हर समस्या के लिये ईश्वर को ही क्यों जिम्मेदार ठहराना? Pramod Mehta, June 15, 2023June 20, 2023 Why is God ‘always’ responsible? लगभग हर भारतीय नागरिक की यह मनःस्थिति है कि वह परेशानियों/समस्याओं/संकट के लिये ईश्वर(God) को जिम्मेदार मानता है, चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो । पहले तो हम यह समझ लें की ईश्वर किसी का न तो अच्छा करते हैं न ही बुरा करते है| ईश्वर (God) भी हमारे समान एक व्यक्तित्व है जिसने हर उस नियम का पालन किया जो एक व्यक्ति के जीवन की आवश्यकता है । वे सर्वगुण सम्पन्न थे अतः उनको ईश्वर का रूप माना गया और सभी के प्रेरणा श्रोत बने। यह एक मानवीय स्वभाव है कि, वह किसी भी अनुचित कर्म के लिये स्वयं को जिम्मेदार नहीं मानकर किसी अन्य को इसका दोषी ठहराता है। चूंकि ईश्वर (God) एक मूक सर्वोपरि शक्ति है अतः अधिकांशतः मानव उसको हर बुराई का जिम्मेदार मानकर चलता है। परंतु ईश्वर को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराना चाहिये उसके निम्न कारण हैं। सभी व्यवस्थाएं स्वाभाविक एवं स्व-संचालित हैं – इस संसार में जो भी घटनायें होती हैं वे अपने आप शासित हैं। उनपर न तो ईश्वर कोई अधिकार है न ही किसी व्यक्ति का। प्रकृति की सभी व्यवस्थाएं एवं नियम अपने आप संचालित हैं। अतः ईश्वर (God) को जिम्मेदार ठहराना औचित्यपूर्ण नहीं है। गीता के अध्याय 3 (32) में भी यही कहा गया है “जो मनुष्य मुझमें (ईश्वर) में दोषारोपण करता है वह निष्प्राण हैं”। ‘स्वयं पहचानों एवं अपनाओं का सिद्धांत’ – प्रकृति ने मानव को वो सभी गुण प्रदान करें है जिससे वह संसार को पहचान कर उचित मार्ग पर चले अर्थात बुराई से दूर रहकर अच्छे को अपनाये । चूंकि सभी व्यवस्थाएं स्व-संचालित हैं अतः कोई हाथ पकड़ कर यह नहीं बताएगा कि क्या अच्छा व क्या बुरा है । यह तो व्यक्ति को निश्चित करना है कि उसके हित में क्या है। यह तभी संभव जब वह आत्मा की सुनें और मन को टाले। हमें स्वयं ही दुनिया को पहचानकर कर्म करना है। ईश्वर (God) के उपदेश हमारा मार्ग दर्शन कर सकते हैं। कर्म सत्ता का एकाधिकार – लगभग प्रत्येक व्यक्ति की मान्यता है कि, “जैसे कर्म करेंगे वैसे फल मिलेंगे” अर्थात कर्म ही सबकुछ है। तो फिर ईश्वर को किसी भी कार्य के लिये जिम्मेदार बताना यह कहाँ की समझदारी है। चूंकि ईश्वर (God) प्रत्यक्ष रूप से हमारे इस कृत्य का कोई विरोध नहीं करता इसका मतलब यह नहीं की वह जिम्मेदार है। कर्म के आगे तो ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकते । ‘में स्वयं का मालिक हूँ’ – जीवन में व्यक्ति अपनी सुविधा, सोच, समय के अनुसार कर्म करता है, अर्थात वह स्वयं का मालिक है। इन कर्मों को करते हुए कुछ बुरे परिणाम भी उसके सम्मुख आते हैं, तब व्यक्ति ईश्वर को इसके लिये जिम्मेदार मानता है । उस समय हम यह नहीं सोचते कि, ईश्वर (God) बीच में कहाँ से आ गए क्योंकि कर्म और स्वयं की बीच तो कोई तीसरा था ही नहीं। ईश्वर (God) तो वह शक्ति है जिसके ध्यान, स्मरण, स्तुति एवं प्रार्थना से हम सद्कर्म करने की ओर अग्रसर हो सकते हैं। किन्तु किये हुए बुरे कर्मों के परिणामों से नहीं बच सकते। जिस ईश्वर की स्तुति करके के प्रार्थना करते हैं कि प्रभु हमको अच्छे गुण देना। उसी को बुराई का जिम्मेदार बताकर हम न केवल अपनी निष्ठा को कमजोर करते हैं, बल्कि उसकी संप्रभुता पर प्रश्न चिन्ह लगाकर आस्था को समाप्त कर देते हैं। अंत में यही प्रार्थना की जा सकती है “इतनी शक्ति हमें देना दाता (ईश्वर) मन का विश्वास कमजोर हो न, हम चलें नेक रस्ते पे, भूल कर भी कोई भूल हो ना” ♬ Positive Thinking blog on lifegodgod is reponsiblehealthy mindlife lessonspositive attitudepositivityself-respectsuccess
प्रबंधन एक दिशा निर्देश है जो स्वयं से आरंभ होता है जिसे आपने सुंदरतम ढंग से विस्तार पूर्वक समझाया है, ये भी स्पष्ट किया कि नीति उपदेश से अधिक जीवनशैली सार्थक है 👍🙏 आभार व बधाईयां 👍🙏 Reply