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मनोबल क्या है?

Pramod Mehta, October 14, 2022December 5, 2022

What is morale?

मनोबल, आत्मबल, आत्मविश्वास, विल पावर या इच्छाशक्ति एक ही अर्थ के अलग-अलग शब्द हैं। मनोबल एक ऐसी विशेषता है जो हर बच्चे, युवा, एवं वरिष्ठ व्यक्ति में विध्यमान होना वांछनीय है, क्योंकि यही विशेषता व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करती है। किसी भी योजना को पूर्ण करने के लिए तीन बलों की मुख्य रूप से आशयकता पड़ती है। प्रथम कार्यबल (workforce), लगन बल (determination) एवं मनोबल (willpower) । योजना को मूर्त रूप देने के लिये उपयोग में आने वाले भौतिक संसाधन ही ‘कार्यबल’ है । भौतिक संसाधनो को क्रियान्वित करने के लिये लगने वाली शक्ति ‘लगन बल’ है । ‘कार्यबल’ व ‘लगन बल’ को प्रभावशील बनाने के लिये जो शक्ति लगती है वह है ‘मनोबल’ ।

सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि, यह मनोबल क्या है ? कोई भी कार्य को उचित ढंग से पूर्ण करने, समस्या का सही निवारण करने, एवं जिंदगी के उतार-चड़ाव को सहने की मानसिकता ही मनोबल है। मनोबल तो हर व्यक्ति में विध्यमान होता है बस ज़रूरत है इसको जागृत करने की । जैसे हनुमान जी के संबंध में किवदंती है कि, उनकी अजेय एवं अपार शक्तियों को जागृत करवाने के लिये शक्तियों का स्मरण करवाना पड़ता था । मानव में मनोबल को जागृत करने के लिये छः मानसिकताओं का होना आवश्यक है।

1.मानस बनाना – किसी कार्य को ‘करने’ या ‘सामना’ करने की प्रवृत्ति को ‘मानस’ बनाना कहा जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है इंजेक्शन लगवाना और अचानक सुई चुभना, जब हमको अचानक सुई चुभती है तो दर्द का जो अनुभव होता है वह इंजेक्शन लगवाते समय कम प्रतीत होता है, दोनों में अंतर केवल इतना है कि सुई चुभने के पूर्व मस्तिष्क को यह आभास नहीं था की सुई चुभने वाली है परंतु इंजेक्शन लगवाने के पूर्व मस्तिष्क को यह पता था की  सुई चुभेगी । दर्द की प्रबलता दोनों समय एक ही थी परंतु कम दर्द एवं अधिक दर्द का अनुभव होना मस्तिष्क पर निर्भर था । इंजेक्शन लगते समय हमारा ‘मानस’ किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति का ‘सामना’ करने के लिये तैयार था इसलिए दर्द की प्रबलता कम महसूस हुई। यहाँ पर ‘सामना’ मानस के रूप में है । सारांश में यह कहना उचित होगा  कि, जब भी मानस तैयार होगा तो किसी भी प्रकार की प्रबलता हमको सामान्य ही अनुभव होगी ।

2.सकारात्मक मानसिकता – मनोबल को जागृत करने के लिये सकारात्मक मानसिकता का भाव होना अति आवश्यक है जो इस उदाहरण स्पष्ट होता है। ऐसा माना जाता है कि, पानी में डूबता व्यक्ति यदि गौमाता की पुंछ पकड़ ले तो वह खींचकर किनारे लगाती है, ठीक इसके विपरीत यदि भैंस की पुंछ पकड़ ले तो वह खुद वहीं पानी में बैठ जाती है और आदमी डूब जाता है। गाय यहाँ सकारात्मक और भैंस नकारात्मक मानसिकता है। किसी भी प्रयास के लिये नज़रिया एक महत्वपूर्ण घटक है यदि हम किसी भी टास्क को अंतिम रूप देने की प्रबल इच्छा रखते हैं तो हमारी सभी गतिविधियां कार्य को पूरा करने में जुट जायेंगी। यही ‘प्रबल इच्छा’ सकारात्मक मानसिकता हैं।

3.निर्णय की मानसिकता – मनोबल को तैयार करने के लिये निर्णय की क्षमता को जन्म देना भी बहुत ज़रूरी है। निर्णय लेना मनोबल का एक बहुत आवश्यक तत्व है।  अनिर्णय की स्थिति एक प्रकार से भ्रम/उलझन है जिसको समय पर दूर करना अति आवश्यक है। अक्सर निर्णय के बाद विपरीत परिणाम के भय से निर्णय लेने में हिचकिचाते है या विलंब कर देते हैं परंतु निर्णयात्मकता की मानसिकता वाला व्यक्ति समय पर निर्णय लेकर अनिर्णय के बुरे परिणामों से बच सकता है। ऊपर वाले उदाहरण में यदि हमने इंजेक्शन लगवाने का निर्णय नहीं लिया होता तो इंजेक्शन से दवा लेने का कार्य अधूरा रह जाता और संभव है रोग विकराल रूप धरण कर लेता।

4.ज़िम्मेदारी का भाव – आत्मविश्वास को जागृत करने के लिये ‘ज़िम्मेदारी वहन’ करने की मानसिकता होना भी बहुत आवश्यक है । जब तक हम किसी कार्य के लिये अपने आपको जिम्मेदार नहीं समझेंगे तब तक हमारे में आत्मविश्वास की स्थिति पैदा नहीं होगी। दायित्व का निर्वहन करने से आत्मविश्वास मजबूत हो जाता है क्योंकि यह कार्य हमको एक अद्रश्य प्रसन्नता देता है जो हमारा बल बन जाती है। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है किसी आपात स्थिति में पीड़ितों की हर संभव मदद करना। यह मदद करने की प्रवृत्ति ही हमारा आत्मबल है जो जिंदगी की समस्याओं सुलझाने में सहायता करता है । ऐसे कार्य हमारी प्रतिष्ठा का निर्माण करते हैं जो एक सामाजिक व्यक्ति के जीवन की आवश्यकता है।

5.आत्मनिर्भरता का भाव – इस भाव से आत्मबल पुष्ट होता है । दूसरों पर निर्भरता अधिकतर स्वयं के दुःखों का कारण बनती है जिससे हम हीन भावना के अंधेरे कुएँ में मूक होकर पड़े रहते हैं। आत्मनिर्भरता के लिये आवश्यक है अपने अंदर छुपी प्रतिभा को बाहर निकालकर संसार के सम्मुख सीना तान के खड़े होना और यह सोचना कि, ‘हम किसी से कम नहीं’ । जैसे ही हम आत्मनिर्भरता के पाषाण पर विराजमान होंगे तो मानस में मजबूती की मोहर लग जायेगी। वर्तमान में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की क्रांति का कारण भी यही है कि, विश्व में भारत ‘सोने की चिड़िया’ का ख़िताब पुनः प्राप्त करे।

6.जुझारू मानसिकता – संघर्षशील मानसिकता सफलता एवं विजय प्राप्त करने का सर्वोत्तम प्रयास है। जिस प्रकार से हृदय की जांच में सीधी लकीरें बनना इस बात का संकेत है कि वह कार्यशील नहीं है परंतु लकीरें ऊपर-नीचे है तो वह ठीक है। इसी तरह जिंदगी में उतार-चड़ाव नहीं हैं तो वह नीरसता का संकेत है, परिणामतः हृदय की सीधी लकीरें । आचार्य चाणक्य का कथन है कि, “किसके कुल में दोष नहीं होता ? रोग के द्वारा कौन पीड़ित नहीं हुआ ? दुःख किसको नहीं मिला ? सुख सदा किसको रहता है।“ अतः सुख-दुख का चक्र चलता ही रहेगा और संघर्षशील मानसिकता हमको जीवन चक्र के केंद्र में रखेगी जिससे जिंदगी संतुलित बनी रहेगी।

मानस बनाना, सकारात्मक, जुझारू व निर्णयात्मकता की मानसिकता, ज़िम्मेदारी और आत्मनिर्भरता का भाव  जिंदगी रूपी क्रिकेट में मनोबल के छक्के की छः मानसिकता रूपी रन हैं जो मैच को जिताने में अहम किरदार निभाते है। आत्मबल एक ऐसा गुण है जो हमारे पुरुषार्थ को जाग्रत रखता है। यह गुण मुश्किल क्षणों में ऊर्जा का श्रोत साबित होता है। आत्मबल हमें हर बुराई और विघ्न-बाधाओं से बचाता है। कहते हैं कि मरणासन्न शरीर में भी नवजीवन का संचार कर दे, ऐसी अमृत बूंद है यह । मनोबल वह शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर देती है।

सकारात्मकता के हल से जोती, ज़िम्मेदारी की खाद
निर्णय के नल से सींचा आत्मनिर्भरता का जल
मनोबल की बगिया महक उठी जब खिला मानस का फूल  

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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

My love for our mother tongue makes me write in simple Hindi so that people may understand easily.


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