दास व्यापार और उसका उन्मूलन Pramod Mehta, August 23, 2022December 5, 2022 Slave trade and its abolition संयुक्त राष्ट्र संघ हर वर्ष 23 अगस्त को “दास व्यापार और उसके उन्मूलन” के स्मरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day for the Remembrance of the Slave Trade and its Abolition)” के रूप में मनाता है। यह उन पुरुषों और महिलाओं की स्मृति का सम्मान करने का दिन है, जिन्होंने गुलामी और अमानवीयकरण के अंत का मार्ग प्रशस्त किया। भारत के संदर्भ में इस दिन की महत्ता है क्योंकि हमने भी 15-अगस्त-1947 को गुलामी की ज़ंजीरें तोड़कर आज़ादी प्राप्त की थीं । इस शीर्षक को वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में विचारण । नौकर या दास ‘कार्य का सम्मान देश का मान’ दास प्रथा का उन्मूलन तो हो गया परंतु वह दूसरे रूप (शोषण) में आज भी हमको चिड़ा रही है। बहुत से सरकारी/निजी संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी दासता के दंश के दर्द को बर्दाश्त कर रहे है, क्योंकि आज भी अधिकांश भारतीय नौकरी पर ही आश्रित है और इसका फ़ायदा उठाकर नियोक्ता अधिनस्थों का शोषण कर रहा है। कर्मचारी की नियुक्ति कार्यालय में कार्यालयीन कार्य हेतु होती है परंतु अधिकारी उसको निजी कार्यों के लिए इस्तेमाल करता है कुछ तो अति निजी कार्य भी कर रहे हैं। कितने ही सेवक आज भी शारीरिक प्रातड़ना के शिकार हैं। घरेलू सेवकों की हालत कहने लायक नहीं है। गाँवों में आज भी गरीबों का शोषण, अस्प्रश्यता देखी जा सकती है । क्या यह दास प्रथा का बदला हुआ रूप नहीं है ? विकसित भारत का सपना तभी सच होगा जब निचले स्तर पर संपन्नता पहुंचेगी। हिन्दी फिल्म ‘संबंध’ (1969) का श्री महेंद्र कपूर जी का गाया हुआ यह गीत इन परिस्थितियों से तो बिलकुल मेल खाता है। एक बार पूरा गीत ध्यान से अवश्य सुनना चाहिये। “अँधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालों, अरे ओ रोशनी वालोंबुरे इतने नहीं हैं हम, ज़रा देखो हमें भालो, अरे ओ रोशनी वालो” प्रतिभा की दासता समय के संग नहीं होगी जंग बहुराष्ट्रिय, विदेशी व्यवसायिक संस्थानों ने तो वास्तव में उनके कर्मचारियों की आज़ादी धन देकर हड़प रखी है जो एक अप्रत्यक्ष गुलामी है। आवश्यक ज़िम्मेदारीयाँ परिवार, स्वास्थ्य, समाज एवं देश के लिये उनके पास समय नहीं है । समय की कमी एवं दूरी के कारण माता-पिता की चिता को ऑन लाइन मुखाग्नि देने का रिवाज़ भी आजकल बहुत चलन में है । समय निकलने के बाद ‘सब कुछ लुटा के होंश में आये तो क्या किया’ । इस माहौल को देखते हुए में एक गीत गुनगुनाता हूँ “अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरु कहाँ ख़तम, ये मंज़िलें है कौनसी न वो समझ सके न हम”। नागरिक या दास ‘दास करेगा दासता को ख़ाक’ अधिकतर सरकारी गैर सरकारी विभागों/कार्यालयों में एक नागरिक की स्थिति दास के समान ही है, वहाँ पर स्थापित लोग आम आदमी के साथ एक दास जैसा ही व्यवहार करते हैं जिसका में स्वयं भी भुक्त भोगी हूँ । पढ़े लिखे तो फिर भी ठीक हैं परंतु अन्य जन मानस तो कर बद्ध कतार में खड़ा दास प्रथा की व्यथा बयां करता है। धन की दासता ‘धन का दंभ निकालेंगे हम’ धन के लिये कहावत है कि, ‘धन हमसे है हम धन से नहीं’ परंतु वर्तमान में इसका उलट है । धन की दासता इतनी धनी हो चुकि है कि, इसको अर्जन करने के लिये मर्दन जैसे जघन्य अपराध तक आम बात है। मानवीय मूल्य की गिरावट हो या रुपए का अवमूल्यन दोनों ही देश के लिये घातक हैं। आदतों के दास ‘बुरी आदत का अंत तुरंत’ अपनी आदतों का दास होना भी हमको बुराइयों की ओर धकेलता है जिसका सर्वश्रेष्ठ सबूत धूम्र एवं सुरा पान है जिसके लिये कुछ लिखना भी उसकी हामी करना है। कुछ आदतों के दास होने की प्रष्ठभूमि में किसी हद तक आत्मविश्वास के कमी भी जिम्मेदार है अतः ऐसी दासता को तुरंत आत्मविश्वास जगाकर दूर करना सभी के लिए हितकारी होगा। दुनिया की दासता ‘दुनिया माने बुरा तो गोली मारो’ जीवन में ‘दुनिया क्या कहेगी’ की दासता भी बहुत पेठ कर गयी है। जिंदगी को हम अपने अनुसार न जी कर दुनिया के हिसाब से जीते है, ऐसा दिखावा अक्सर पतन का मार्ग प्रशस्त करता है। इसीलिए कहा गया है ‘सुनो सबकी करो मन की’ । मन की दासता ‘मन के हारे हार मन के जीते जीत’ इन सभी दासता में सबसे प्रथम स्थान पर है हमारे मन की दासता जो आत्मा की गुलामी का कारण बन जाती है। मानव का मन चाहे तो दास बनवा सकता या मालिक इसलिए मन के मालिक बनना ज्यादा उत्तम है न कि मन के गुलाम जो हमको कहीं का नहीं रखता। साथियों, यह लेख नहीं एक कटु सत्य है जिसको यदि स्वीकार करके समाज से अव्यवस्थाएं दूर करने का प्रयास ही हमारा सफल सहयोग होगा । सेवक का रख कर मानप्रतिभा करेगी परिवार का सम्मानगरिकों का कार्य होगा आसानमन और धन हो जाएँगे दासतभी होगा दुनिया पर हमारा राज Healthy Mind Positive Thinking