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‘प्रकृति’ (Nature) निश्चित स्वभाव की अनिश्चित प्रक्रिया

Pramod Mehta, April 13, 2023April 13, 2023

‘Nature’ an indefinite process of a definite nature

ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्ति ‘प्रकृति’(nature) है जो एक अटल सत्य है और इसके आगे सभी नतमस्तक है फिर भी मानव द्वारा ऐसे प्रयास लगातार जारी हैं जिनसे वह ‘प्रकृति’ को पीछे छोड़ दे और अपनी मनमानी करे।  मनुष्य की इन कुत्सित कोशिशों के परिणामस्वरूप पृथ्वी तो क्या ब्रह्मांड में भी बहुत सी परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती जा रही हैं जो मानव स्वयं के लिये प्राणघातक सिद्ध हो रही हैं। ‘प्रकृति’ का भी यह प्रयास  है कि सभी प्राणियों के हित में वह ब्रह्मांड पर नियंत्रण रखे जिसके पीछे मुख्य कारण है मानव का ‘मस्तिष्क’ जिसको आज तक कोई भी नहीं समझ सका है एवं ईश्वरीय शक्ति को यह ज्ञात है कि मानव स्वार्थवश किसी भी हद को पार कर सकता है इसलिये संतुलन एवं नियंत्रण बनाये रखने के लिये ‘प्रकृति’ (nature) अपने स्तर पर प्रयास करती रहती है । कभी कभी ‘प्रकृति’ के यह प्रयास प्राकृतिक प्रकोपों एवं आपदाओं का रूप धारण कर लेते हैं और जीवन संकट में पड़ जाता है। इस लेख के माध्यम से ‘प्रकृति’ के साथ खिलवाड़ करने से होने वाले परिणामों पर विचार किया गया है।

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प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुरता से दोहन – पृथ्वी का पेट पीट पीट कर उसके अंदर की अमूल्य धरोहरों का हम अत्यधिक दोहन करके ‘प्रकृति’ की नाराज़गी का सामना भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, अग्नि, बाढ़ आदि के रूप में कर रहे हैं । मानव जीवन यापन के लिये ‘प्रकृति’ ने उसकी धरोहरों/संसाधनों को मुफ़्त उपहार स्वरूप प्रदान किये है क्योंकि उन सभी की मानव जीवन के लिये आवश्यकता है परंतु मानव उनका उपभोग आरामदायक जीवन के लिये करे तब तक तो फिर भी ठीक है परंतु अतिविलासिता के लिये किये उपभोग तो ‘प्रकृति’ (nature) के साथ ज्यादती ही है। इन अनुचित प्रयासों की सफलता के लिये किए जा रहे अनुसंधानों एवं अन्य कार्यों के कारण ‘प्रकृति’ का अनुचित उपयोग हो रहा है जिसका खामियाज़ा अधिकांश मानव जाति को वहन करना पड़ रहा है जिसका दूर दूर तक अतिविलासिता से कोई प्रयोजन नहीं है ।   

प्राकृतिक स्थलों का इतर उपयोग – ‘प्रकृति’ ने बहुत ही मनोहारी एवं सुंदर स्थलों का उपहार प्रदान किया है जिनमें से कुछ धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप के भी हैं परंतु मानव इनका इतर उपयोग करने लगा है जो ‘प्रकृति’ को कभी भी मंजूर नहीं है। यह सभी धार्मिक स्थल व्यक्ति की आत्मा की शांति एवं ध्यान आदि के लिये हैं परंतु अब उनका उपयोग पर्यटन आदि के रूप में होने लगा है जो धार्मिक स्थल की गरिमा एवं सम्मान के विरुद्ध है। श्री केदारनाथ जी एवं जोशी मठ का उदाहरण तो प्राकृतिक प्रकोप का प्रत्यक्ष प्रमाण है जो धर्म आराधना के बजाय पर्यटन स्थल बन गये । हाल ही में एक जैन तीर्थ (श्री शिखर्जी) को भी पर्यटन स्थल घोषित किया गया था जिसका पुरजोर विरोध हुआ।  

सृष्टि की सभी रचनायें अमर हैं – ऐसा माना जाता है कि इस संसार की कोई भी वस्तु अमर नहीं है सभी को एक न एक दिन समाप्त होना है, परंतु अटल सत्य यह है कि सृष्टि की किसी भी वस्तु को सर्वदा के लिये समाप्त नहीं किया जा सकता है । मानव यह मानकर चल रहा है कि, वह ही सर्वेसर्वा है और चाहे जो कर सकता है परंतु यह उसका वहम मात्र है, क्योंकि वह केवल सृष्टि की वस्तुओं का रूप परिवर्तन कर सकता है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मनुष्य स्वयं ही है जिसकी उत्पत्ति किसी न किसी पदार्थ से हुई है एवं मृत्यु पश्चयात व्यक्ति का शरीर मिट्टी में परिवर्तित हो जाता है और आत्मा तो अजर अमर है ही जैसा कि, महान उपदेशक ग्रंथ ‘गीता’ के अध्याय दो में उल्लेखित है। यह अमरता ही मानव एवं ‘प्रकृति’ (nature) में भेद करती है क्योंकि मानव को ‘प्रकृति’ का सीमित उपयोग ही उपलब्ध है, अन्यथा वह इस सृष्टि का ही विनाश कर देगा ।

‘प्रकृति’ निश्चित स्वभाव की अनिश्चित प्रक्रिया है – ‘प्रकृति’ ने सभी जीवों के जीवन की आवश्यकताओं के लिये सभी संसाधन सुनिश्चित किये हुए हैं जिनका उपयोग करके जीवन यापन किया जा सकता है । आवश्यकता केवल इस बात की है कि इसका उपयोग उचित तरीके से हो क्योंकि अनुचित उपभोग सभी के जीवन को संकट में डाल सकता है। इस अनुचित उपभोग को रोकने के लिये ही ‘प्रकृति’ की प्रक्रियाएं अनिश्चित होती हैं अर्थात मानव यह अनुमान नहीं लगा सके की आगे क्या होगा । अक्सर मानव की रिसर्च एवं भविष्यवाणी गलत सिद्ध होने या उसके विपरीत घटना होने की पीछे केवल एक ही कारण प्रतीत होता है कि ‘प्रकृति’ मानव को ऐसा कोई अवसर नहीं देना चाहती है कि वह सर्वोपरि हो जाय क्योंकि, यदि कहीं मानव को ईश्वरीय शक्ति (‘प्रकृति’) प्राप्त हो गयी तो संभव है अनर्थ हो जायेगा इसलिये इस संसार में अनिश्चितता बनी रहना प्राणियों के हित में ही है।  

मशहूर हिन्दी फिल्म आनंद का एक संवाद ‘प्रकृति’ की महत्ता को बयान करता है “जिंदगी और मौत ऊपर वाले (‘प्रकृति’/ईश्वरीय शक्ति) के हाथ है जहाँपनाह, उसे न आप बदल सकते हैं और न मैं। हम सब रंगमंच की कठपुलियाँ हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उँगलियों मैं बंधी है, कब, कौन कैसे उठेगा, कोई नहीं बता सकता”  

अपने महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिये मानव ‘प्रकृति’ से खिलवाड़ करने पर आमादा है जिसके कारण आए दिन नई-नई आपदायें उत्पन्न हो रही हैं जिसका त्वरित एवं सबसे सटीक उदाहरण कोरोना की भयानक बीमारी है जिसके विकराल रूप ने विश्व को बुरी तरह से झकझोर दिया । अतः इससे हम सब को सबक लेना बहुत ज़रूरी है कि ‘प्रकृति’ के साथ दोस्ताना व्यवहार करें जो हमारे जीवन के लिये अमृत है नहीं तो इसको हलाहल बनने में देर नहीं लगेगी।

अंत में “जिनके सिर पर हो वृक्ष की छाँव, पाँव के नीचे जन्नत होगी”। 
करोगे यदि ‘प्रकृति’ का सम्मान, मिलेगा मन मान
अगर किया उसका अपमान, धरी रह जायेगी सब शान
मानव छोड़ तेरा अभिमान, कुदरत कर देगी मालामाल
‘प्रकृति’ है हमारी माँ समान, करेगी बच्चों का कल्याण
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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

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