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स्वयं से स्वयं का कत्ल

Pramod Mehta, January 7, 2023March 11, 2023

Me Against Myself

व्यक्ति अक्सर ऐसे कार्य करता है जिसको ‘कुएं में कूदना’ कहा जाता है। हम अपने ही दुश्मन बनते हैं क्योंकि जब कोई भी गलत कार्य उसके बुरे परिणाम जानने के बाद भी किया जाए तो यह ‘स्वयं से स्वयं का कत्ल’ ही कहलायगा । एक कहावत है ‘हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था’ ठीक इसी तरह हम भी स्वयं से छलावा करते हैं । आज शिक्षा अपने उच्च स्तर पर है एवं लगभग अधिकांश व्यक्ति शिक्षित हैं भले ही उन्होंने ऐकडेमिक शिक्षा प्राप्त नहीं की हो परंतु इंटरनेट के इस दौर में वह सभी अच्छे एवं बुरे पहलुओं से बखूबी परिचित है फिर भी ऐसे कार्य करना जिनका अंजाम बुरा है तो वह अपने आप, परिवार, समाज एवं देश से ज्यादती है । प्रस्तुत लेख में इसी संदर्भ के विभिन्न पहलुओं पर विचारण है।

निजी मामलों की सार्वजनिक चर्चा –

अक्सर अपने व्यक्तिगत मामलों चाहे वह स्वयं से संबंधित हो, परिवार से संबंधित हों व्यक्ति दूसरे परिचितों एवं अपरिचितों से चर्चा में व्यक्त कर देते हैं। पहली बात तो यह है कि, इस मृत्युलोक में लगभग किसी को किसी से कोई लेना देना नहीं है अतः स्वयं से संबंधित कही गई बातों में किसी की कोई रुचि नहीं होती है हाँ यदि, अन्य पक्ष जो हमारी बात ध्यान से सुन रहा है तो संभव है 90% उस पक्ष का कोई न कोई स्वार्थ जुड़ा होगा या वह इन सूचनाओं का दुरुपयोग कर सकता है।

कभी-कभी व्यक्ति अपनी (self) संपन्नता की चर्चा बड़े ही अभिमान से  लोगों से करता है और जब जरूरत पड़ती है तो सहायता से मुह मोड लेता है ।  ऐसा  कार्य न केवल स्वयं स्वयं की प्रतिष्ठा के लिये अत्यंत घातक है बल्कि परिवार की छवि को भी क्षति पहुँचती है। इस संबंध में महान रानीतिज्ञ श्री चाणक्य का कहना था कि, अर्थ का नाश, हृदय का संताप, घर की बुराइयों, स्वयं का ठगा जाना एवं अपने अपमान को कदापि प्रगट न करें।

चेतावनी का उल्लंघन –

दो हड्डी एक मुंडी के निशान की उपेक्षा भी एक महत्वपूर्ण कारण है जो ‘स्वयं से स्वयं का कत्ल’ के लिए जिम्मेदार है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है तंबाखू एवं मदिरा जिसकी भयानक बुराइयों को बहुत बड़े स्तर पर प्रासारित किया जाता है फिर भी लोग उसका सेवन करने से नहीं चूकते हैं । इसी तरह के कई कार्य हैं जो हम कर रहे हैं जिनको अपने हित के लिये रोका जा सकता है ।

यंग पीढ़ी को नुकसान होने का एक कारण है चेतावनी का उल्लंघन करके जोखिम भरे कार्य करना जिससे मृत्यु तक की संभावना रहती है। आये दिन समाचार पढ़ने में आता है ‘स्कूल/कॉलेज छात्र की डूबने से मौत’। अति तीव्र गति से वाहन चलाने से घायल/मौत आदि। इस प्रकार की हानि राष्ट्रीय क्षति है जिसको हर संभव रोका जाना आवश्यक है।

ज्ञान का बखान –

यह कारण तो बहुत ही सटीक है क्योंकि व्यक्ति को थोड़ी सी भी जानकारी होती है तो वह सार्वजनिक रूप से उसका बखान करता है चाहे वह संबंधित हो या न हो केवल दिखावे के लिए कि, में बहुत ज्ञानी हूँ व्यक्ति (self) ज्ञान का वमन करने लगता है। वमन का अर्थ ही है स्वास्थ्य की खराबी और यही वमन ‘स्वयं से स्वयं का कत्ल’ के लिये जिम्मेदार होता है। इससे चरित्र एवं प्रतिष्ठा की बहुत बड़ी हानि होती है जो हमें कहीं का नहीं रखती है।

ऐसा माना जाता है चरित्र एवं प्रतिष्ठा का अंत आत्मा के अंत के समकक्ष है। वर्तमान में संचार माध्यमों से जिस प्रकार से बोला एवं दिखाया जा रहा है वह कितना घातक है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।

संस्कृति का अपमान –

व्यक्ति की संस्कृति उसका जीवन है। हर व्यक्ति जन्म से ही संस्कृति की विरासत लेकर पैदा होता है जो उसके खून में भी पायी जाती है । यह संस्कृति व्यक्ति के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, भाषा-शैली, पहनावा एवं व्यवसाय आदि की परिचायक होती है । अक्सर हम अपनी संस्कृति को छोड़कर दूसरी संस्कृति का अनुसरण करने लगते हैं जो हमारी से विपरीत है। संस्कृति कोई गलत नहीं होती है परंतु जिस स्थान पर हम निवास करते हैं या जिस समाज एवं देश में हमने जन्म लिया है वही संस्कृति हमारे अनुकूल होगी। इसमें वंशानुगत गुण भी सम्मिलित हैं।

अधिकांशतः जब-जब व्यक्ति अपनी संस्कृति छोड़ कर दूसरी अपनाता है तो उसको परेशानियों का सामना करना पड़ता है जो उसके सम्पूर्ण विकास के लिए बाधक सिद्ध हो सकता है। हर देश अपनी संस्कृति के प्रति वफादारी रखता है और उसको बनाए रखने के हर संभव प्रयत्न करता है। इसका बहुत अच्छा उदाहरण है अंग्रेजों ने भारत आकर पैंट,शर्ट,टाई,बेल्ट एवं कोट का चलन प्रारंभ किया क्योंकि उनके देश में ठंड का मौसम बहुत रहता है। हमारा पहनावा सूती पायजामा,धोती,कुर्ता,अचकन था क्योंकि भारत एक गर्म जलवायु वाला देश है।

इस पहनावे की संस्कृति परिवर्तन के कारण हम कितनी बीमारियों को झेल रहे हैं उसका ज्ञान हमको नहीं है। इसी तरह भाषा आदि की संस्कृति बदलने से बहुत सी प्रतिभा दब कर रह गई हैं । हम अपनी संस्कृति को समाप्त करके अपने ही दुश्मन बन चुके हैं।

इंद्रियों पर नियंत्रण –

हमारी पाँच इंद्रियाँ भी हमको अर्श से फर्श पर ला सकती हैं इसलिये इन पर नियंत्रण रख कर हम ‘स्वयं से स्वयं के कत्ल’ के महाभियोग से बच सकते हैं। यह प्रकृति द्वारा शरीर को दिये गये पाँच वरदान हैं जिनका उपयोग यदि किफायत एवं समझदारी से किया जाए तो व्यक्ति महान नहीं तो छोड़ना पड़ेगा जहान ।

आँखें सबसे अमूल्य हैं फिर भी हम इनका कितना दुरुपयोग कर रहे हैं जो कि, सर्वविदित है। मुझको पड़ने का चश्मा 45 वर्ष की उम्र में लगा था आजकल तो 5 वर्ष के बालक/बालिका को ही लग जाता है। हमारे कान के लिए हम कितने दुश्मन हैं यह मोबाईल कंपनियों के इयर पॉडस ही बता देंगे। जीभ का दुरुपयोग दोनों रूपों में हो रहा है, अनावश्यक बातें/चर्चा करने में एवं खाने में तो महा दुरुपयोग होता है। अन्य इंद्रियों की दुर्गति से तो सब चिर-परिचित हैं । इंद्रियों के प्रति लापरवाही मतलब ‘स्वयं से स्वयं का कत्ल’।

रिश्तों का मान –

हमें अक्सर अपने स्वयं के रिश्तों में बहुत बुराइयाँ दिखती रहती हैं और दूर के लोगों में सिर्फ अच्छाइयाँ ऐसा क्यों ? यह तो स्वाभाविक है कि निकट से देखने पर ही वस्तु एवं रिश्ते में खामियाँ नज़र आती हैं क्योंकि ‘दूर से ढोल सुहावने लगते हैं’। परंतु इन खामियों की उपेक्षा करके रिश्तों का मान रखा जाए तो संभव ही नहीं वरन निश्चित है कि, हमें कामयाबी के शिखर पर जाने से कोई नहीं रोक सकता है।

जब कोई समस्या आती है तो निकट के रिश्ते ही काम आते हैं और वे तन,मन एवं धन से सेवा करते हैं बशर्त है कि हमने रिश्तों का मान रखा हो अन्यथा समस्या की सुनामी हमारे समस्त संसार को समाप्त कर देगी। बुरा कौन नहीं है बस नजरिये का फ़र्क है। हम रिश्तों की बगिया को सम्मान के फूलों से महकायेंगे तो ‘स्वयं से स्वयं का रिश्ता अमर जो जाएगा’।

महान, ज्ञानी एवं संत लोग कह गये हैं की, स्वयं में झाँको सब कुछ यहीं पर है ईश्वर भी यहीं पर मिलेगा अतः जब ईश्वर अपने स्वयं में मोज़ूद है तो हम स्वयं का कत्ल ही नहीं कर रहे हैं बल्कि परम पिता परमेश्वर की सत्ता को भी चुनौती दे रहे हैं। एक बात तो निश्चित है कि ‘घर के गेडे से ही आँख फूटती है’ दूसरों को दोष देने का कोई अर्थ नहीं होता है।

अधिकांशतः हम अपने ही दुश्मन बन जाते हैं क्योंकि दुनिया तो अपने जगह जैसी चलनी है वैसी चलती है बस हमको यह निश्चित करना है कि, ‘स्वयं से स्वयं का कत्ल’ न हो और ऊपर दिए गये क्रिकेट के छक्के से जिंदगी का मेच जीत लें ।

जिंदगी के सफल सफ़र में, दोस्त बनें स्वयं के,
किस्मत की इबारत लिखेंगे, अपने हुनर के बल पे
इमारत होगी अपनों की, दुश्मन भी जलेंगे देख के
स्वयं से स्वयं का न होगा कत्ल, जब निकलेंगे लफ़्ज़ दिल के

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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

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