‘अतीत’ की घटनाओं की अवसान आयु Pramod Mehta, March 16, 2023March 27, 2023 ‘अतीत’ अर्थात बीता हुआ कल । व्यक्ति के जन्म से ही ‘अतीत’ प्रारंभ हो जाता है क्योंकि जैसे-जैसे समय व्यतीत होता है तो बीते हुए समय की घटनाएं ‘अतीत’ बनती जाती हैं और यह घटनाएं खुश एवं नाखुश करने वाली भी होती हैं। बाल्य अवस्था तक की घटनाएं सामान्यतः व्यक्ति को स्मरण में नहीं रह पाती हैं तत्पश्चात की घटनाएं याद रहने लगती हैं और इनका मंथन मस्तिष्क में चलता रहता है। बार-बार मंथन से यह घटनायें मस्तिष्क में स्थायी मुकाम बना लेती हैं एवं जब भी उस घटना से संबंधित प्रसंग हमारे सम्मुख आता है तब तुरंत पूरी तस्वीर द्रश्य हो जाती है और मन में उथल-पुथल होने लगती है। अब प्रश्न यह है कि ‘अतीत’ की नाखुश करने वाली घटनाओं को कब तक याद रखा जाये ? जिस तरह से प्रकृति संसार के सभी प्राणियों एवं वस्तुओं के अच्छे बुरे परिणामों से बखूबी परिचित रहती है इसलिये उसने इन सभी की आयु निश्चित की हुई है, ठीक इसी तथ्य का अनुसरण करते हुए हमको भी जीवन की नकारात्मक घटनाओं की आयु सीमा निर्धारित करना बहुत आवश्यक है। इस लेख में ‘अतीत’ की घटनाओं की अवसान आयु (Expiry date) पर विचारण किया गया है । आत्मसम्मान का अपमान यह एक एसी घटना है जो व्यक्ति को जीवन भर याद रहती है क्योंकि अपमान आत्मसम्मान पर असहनीय चोट है जो एक बार लग जाये तो उसको भूलना लगभग असंभव है। व्यक्ति चाहे वित्तीय, बौद्धिक व शारीरिक रूप से सक्षम या असक्षम हो अपने आत्मसम्मान को बनाये रखने का हर संभव प्रयास करता है। अपमान के लिये अक्सर हम स्वयं या स्वयं की परिस्थितियाँ ही जिम्मेदार होती हैं । अपमान का या तो तुरंत योग्य निदान हो या फिर बहुत अल्प काल तक ही हम इस पर अपना ध्यान केंद्रित करें और उसके बाद भूल जाना अपने जीवन के लिये श्रेयस्कर/हितकर है नहीं तो व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार हो सकता हैं या बदले की भावना अपराधी भी बना देती है। यहाँ पर एक और ध्यान देने योग्य तथ्य है कि, कभी भी आत्मसम्मान को अहं में परिवर्तित न करें। पारिवारिक मतभेद ‘अतीत’ की घटनाओं में सबसे अधिक याद में रखी जाने वाले पारिवारिक मतभेद भी हैं । चूंकि परिवार के सदस्यों का किसी न किसी रूप में साथ बना रहता है तो उनसे संबंधित घटनायें भी ताज़ा होती रहती हैं। इस प्रकार के मतभेद का अंत तुरंत नहीं हो पाता हैं इसलिये ऐसे मामलों को उनके उद्गम पर ही छोड़ कर आगे बड़ना उचित होगा और संभव है समय का मरहम इन मतभेदों को दूर कर दे या जो है, जहां है और जैसा है उसी को स्वीकारना ही उत्तम उपाय है अन्यथा गृह-कलह व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होता है । पेशे संबंधित घटनायें व्यक्ति को जीवन में बार-बार याद आने वाली घटनाओं में नौकरी, व्यापार एवं व्यवसाय में होने वाली घटनायें भी प्रमुख है । इन घटनाओं को ज़ेहन में रखने की भी एक समय सीमा है क्योंकि इन सभी का संबंध अधिकतर दिमाग से होता है दिल से नहीं । अधिकतर ऐसा माना जाता है कि, व्यापार-व्यवसाय हमेशा दिमाग से करते हैं दिल से नहीं। जिसने भी दिमाग से काम लिया उसका ‘अतीत’ नहीं होता है परंतु, यदि दिल से कार्य किया तो संभव है ‘अतीत’ के घटनाक्रम को भुलाने में समय लग सकता है। फिर भी हमारा यह प्रयास होना चाहिये की यथा-शीघ्र हम अपने बुरे अनुभवों को भूल जायें । मित्रता संबंधी घटनायें जिस संबंध को हम स्वयं बनाते हैं उससे संबंधित बुरी घटनाओं को भूलना ठीक उसी तरह है जैसे पानी में लकीर खींचना । वर्तमान काल में आत्महत्याएं एवं अवसाद की घटनाओं में आश्चर्यजनक वृद्धि होने का मुख्य कारण मित्रता में अनबन, धोखा होना है। मित्रता के संबंध में बहुत सटीक विचार आचार्य चाणक्य का है कि, “कुमित्र पर तो भरोसा करना ही नहीं चाहिये, सुमित्र पर भी विश्वास न करें, क्योंकि यदि कभी उससे अनबन हो गयी तो वह आपके सारे रहस्य दूसरों को प्रकट कर देगा”। जहां पर ‘अतीत’ की घटनाओं को भूलना इतना कठिन हो वहाँ पर “जाने भी दो यारों” वाली सोच को ध्यान में रखते हुए मित्रता से दूर हो जाना ही श्रेष्ठ है। बीते हुए कल की नकारात्मक घटनाओं को यदि जिंदगी का एक हिस्सा मान लिया जाये तो व्यक्ति को कभी भी दुखी नहीं होना पड़ेगा इसलिए कहते हैं कि ‘जो बीत गया वह एक सपना था’ और जिस तरह सपने की याददाश्त थोड़ी देर की ही होती है वैसे ही इन घटनाओं को मानना चाहिये। एक सफल व्यक्ति की पहचान ही है कि उसने ‘अतीत’ की बुरी घटनाओं को कभी भी स्वयं पर हावी नहीं होने दिया और न तो वर्तमान में स्मरण नहीं किया और न ही भविष्य के लिये दिमाग में स्थान दिया। महान उपदेशिका गीता के तीसरे अध्याय में यह उल्लिखित है कि, कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षण मात्र भी बिना कर्म करे नहीं रहता; क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिये वाध्य है। अतः जब हम सभी प्रकृति के अनुसार कार्य कर रहे हैं तो कुछ गलत होना एक स्वाभाविक क्रिया जो किसी से भी हो सकती चाहे हम स्वयं भी क्यों न हों इसलिये अतीत की बुरी घटना को कुछ समय का विषाद मानकर भूलना ही सर्वोत्तम उपाय है । ‘अतीत’ की घटनाओं के संबंध में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि हम हमेशा अपने आप को सही मानते हुए अपनी सोच पर अड़े रहते हैं जिससे यह घटनायें दीर्घ काल तक ध्यान में रह कर सताती रहती हैं । यदि इसके स्थान पर हम यह विचार करें कि हो सकता है स्वयं भी कहीं न कहीं गलत हों क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती है तो संभव है इन बुरी घटनाओं की समय सीमा तुरंत समाप्त हो जाये। ‘अतीत’ को भुलाने की अचूक दवा जैन धर्म का सबसे मूल सिद्धांत ‘क्षमा’ है । भारतीय समाज भी कालजयी रिवाजों, परम्पराओं, कुरीतियों को हटा रहा है । ‘अतीत’ की बुरी घटनाओं का परिग्रह न करके ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सूद लेई’ के विचार को अपनायें तो हम स्वयं भी सुखी रहेंगे और दूसरे भी । गुजरी हुई खताएं, तुम्हारी भी माफ़ हमारी भी सफा,बुराई का बीज को न हमने बोया, न तुमने सींचाजीवन के हर मोड़ पर, रखेंगे एक दूसरे की हया‘अतीत’ का फ़लसफ़ा, कल याद था आज सफा Healthy Mind Positive Thinking past