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सूचनाओं की अति भ्रम में मति

Pramod Mehta, October 24, 2022December 5, 2022

Excess of information

वर्तमान में सूचना क्रांति का दौर प्रकाश गति के समान फैल रहा है । कहीं पर कोई भी घटना घटित होने पर वह पल भर में सम्पूर्ण विश्व में पहुँच जाती है और उसकी प्रतिक्रियाएँ भी उसी तेजी से फैल जाती हैं । समय पर घटनाओं की जानकारी होना जीवन का एक आवश्यक तथ्य है परंतु यह भी ज्ञात होना ज़रूरी है कि, अमुक सूचना किस के प्रयोजन के लिये है । आजकल डिजिटल माध्यमों से सूचनाओं, संदेशो, जानकारीयों एवं विचारों का सैलाब आ गया है और व्यक्ति को मज़बूरन इन सूचनाओं का सामना करना पड़ता है चाहे वो उसके लिये आवश्यक हो या नहीं। इतनी अधिक मात्रा में जानकारीयाँ न केवल मस्तिष्क को आघात पहुंचा रही हैं, बल्कि कई बुराइयों एवं रोगों को जन्म दे रही हैं। इसको सूचनाओं का विस्फोट या जानकारीयों के समुद्र में डूबना कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । यह परिस्थितियाँ तो समय के साथ और विकृत होने की संभावना है, आवश्यकता इस बात की है कि, इससे अपने को दूर कैसे रखा जाय या कैसे बचा जाय। इस लेख में सूचनाओं एवं जानकारीयों की अति से बचने के कुछ ‘स्वार्थी’ उपायों पर विचारण है।

मस्तिष्क के लिये स्वार्थी होना –वर्तमान समय में मस्तिष्क की विशेष चैतन्यता बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अब आमने-सामने के व्यक्तिगत संबंध न होकर ऑनलाइन संपर्क है कब कौन किसको बेवकूफ़ बना दे पता नहीं । एक सर्वे के अनुसार whatsaap की 70% सूचनाएँ प्रामाणिक नहीं हैं और हम दिन भर उसको ही पड़ते हैं। केवल उन्ही बातों को सुना एवं पढ़ा जाय (फ़िल्टर) जिससे या तो हम शांति का अनुभव करें या कुछ आय होती हो या भविष्य में उपयोगी हो । अक्सर परिवारजन एवं मित्र भी नादानी में आकर हमको ऐसी सूचनाएँ प्रेषित कर देते हैं जो हानि पहुंचा सकती हैं अतः उनको भी बहुत सोच समझकर अपनाएं । एक कहावत है कि, “खाली दिमाग शैतान का घर” में इसको अब ऐसे पड़ता हूँ “खाली दिमाग सोशल मीडिया का घर” । जब हम डिजिटल माध्यम से दूर रहेंगे तो कम से कम अपने बारे में तो सोच पायेंगे और यह हमारा क्वालिटी टाइम होगा ।हमारा मस्तिष्क हीरों का भंडार है न कि अनर्गल बातों का ।                                                     “मस्तक स्वस्थ जीवन मस्त”    

व्यक्तित्व के लिये स्वार्थी होना – अन्य लोग जब उनके किन्ही मंतव्यों के लिये भ्रामक सूचनाएँ फैलाते हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि, स्वयं भी उन जानकारीयों का विश्लेषण करें कि उनका ग्रहण करना कितना ज़रूरी है और उन पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहिए या नहीं। एक अच्छे एवं प्रभावी व्यक्तित्व की निशानी है कि, वह सुनिश्चित करें कि, बोले, लिखे एवं आगे प्रेषित (फॉरवर्ड) किये जा रहे शब्द/कथन कितने सशक्त एवं विश्वसनीय हैं, अन्यथा स्वयं की विश्वसनीयता समाप्त होने में देर नहीं लगेगी और भ्रामक सूचना फैलाने वालों का मंतव्य हल हो जाएगा। बहुत से शोधों/सर्वे पर लेख अक्सर डिजिटल माध्यम से मिलते हैं उनकी विश्वसनीयता की जांच तर्क बुद्धि की शक्ति से करें की यह कहाँ तक सटीक है, पुराने अनुभवों से उनकी तुलना करे और घर के बुजुर्गों से सलाह अवश्य करें।                                                         “चरित्र गया तो सब गया”

स्वास्थ के लिये स्वार्थी होना – कभी-कभी व्यक्ति को अपनी सेहत के लिये स्वार्थी होना भी आवश्यक है। सूचनाओं एवं जानकारीयों की अति हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पहुंचा रही हैं जिनके कारण भय एवं अनिश्चितता (anxiety), अवसाद, आत्महत्या, चिंता का मनोविकार (OCD) (उदाहरण – बार-बार मोबाइल चेक करना), उच्च स्तर का तनाव, दृष्टि कमजोर होना एवं उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों की बहुतायत हो गयी है। स्वयं मेंने पिछले 5 वर्षो से टीवी के सनसनाते समाचार नहीं देखे हैं, प्रातः केवल आकाशवाणी से समाचार सुनता हूँ एवं एक समाचार पत्र ही पढ़ता हूँ । क्या में जमाने से पीछे रह गया ? इन भयानक बीमारियो से बचने के लिये आवश्यक है कि हम पहले उन्ही कार्यों को पूरा करें जो स्वयं, परिवार, व्यवसाय, समाज एवं देश के लिये आवश्यक हैं और जब कुछ खाली समय मिला हो तब भी निरर्थक ज्ञान से दूर रहें ।                            “जान है तो जहान है”

समय के लिये स्वार्थी होना – हमारे पास आयु एवं समय सीमित है तो अनावश्यक माध्यमों में अपना कीमती समय व्यतीत करने से क्या हासिल होगा ? समय व्यतीत करते वक़्त यह ध्यान में रखा आवश्यक है जिस पर यह खर्च किया जा रहा है उसकी हमारे जीवन में कितनी उपयोगिता है। जहां तक प्रश्न मनोरंजन में समय व्यतीत करने का है तो आप पाएंगे कि, उत्पादक कार्यों की व्यस्तता से निकाले हुए समय में किए गये मनोरंजन से जो आनंद का अनुभव होगा वह फालतू समय के मनोरंजन से कई गुना अधिक होता है।  वैसे भी असली मज़ा सब के साथ आता है न कि अकेले में ।                                                             “समय संपत्ति है”

धन के लिये स्वार्थी होना – हमारा कीमती समय गैर उत्पादक कार्य में उपयोग कर डिजिटल एवं अन्य माध्यम के लोगों को आय अर्जित करवाने से बेहतर है वही समय उत्पादक कार्यों में लगाकर स्वयं आय अर्जित करें । इंटरनेट के महंगे पैकेज लेकर सोशल मीडिया पर अनावश्यक रूप से खर्च करने से तो अच्छा है भविष्य के लिए बचत की आदत डालना क्योंकि ‘बूंद बूंद से घट भरता है’। स्वयं को बर्बाद करके अन्य को आबाद करने का क्या मतलब है।                                                           “धन सब कुछ नहीं, बहुत कुछ है”

मन पर संयम – सूचनाओं एवं जानकारीयों की अति से बचने के लिये थोड़ा मन को भी क़ाबू में करना आवश्यक है । बहुत सी भ्रामक जानकारीयां, लोक लुभावन विज्ञापन, प्रायोजित समाचार एवं सर्वे इत्यादि तो बहुत सामने आयेंगे और कई तो पूर्व नियोजित (फिक्सिंग) भी होते हैं, यह तो हम पर है कि इन पर कितना ध्यान देना है। इन सब से तभी बचा जा सकता है जब हम अपने चंचल मन को स्वयं के हित में नियंत्रित रखें ।

                                                               “मन का गुलाम आफ़त में जान”

आजकल मोबाइल कंपनियों ने बातचीत करने का शुल्क मुफ्त कर दिया है उसकी जगह इन्टरनेट का शुल्क लिया जा रहा है जो कि, ध्यान देने योग्य है । कॉल फ्री होने के कारण टेली मार्केटिग के कॉल की बहुतायत हो गयी है और आम उपभोक्ता भी मोबाइल पर निरर्थक वार्तालाप लंबे समय तक करता रहता है जो धन एवं समय दोनों का अपव्यय है। एक बहुत बड़ा वर्ग जितने का इन्टरनेट उपयोग नहीं करता उससे ज्यादा उसको चुकाना पड़ता है । यहाँ पर आम आदमी का धन वही व्यय हो रहा है परंतु असली फायदा मोबाइल और टेली मार्केटिग कंपनी उठा रही हैं । सूचनाओं, संदेशो, जानकारीयों एवं विचारों की अति से बचने के सार्थक प्रयास तुरंत अति आवश्यक हो गये हैं क्योंकि अभी यह स्थिति है तो भविष्य कितना मुश्किलों वाला होगा उसका अनुमान करना कठिन है। भारत देश में सशक्त उपभोक्ता संगठन की कमी है जिसके कारण विक्रेता अपनी मनमानी कर लेते है। स्वयं की लागत (समय व धन) पर दूसरों को लाभ पहुंचाने के बदले उनके धन से स्वयं को लाभ मिले ऐसी स्थिति होना समय की मांग है। स्वयं मेने एक लोन देने वाली कंपनी को उनके बार-बार फोन आने पर उस कंपनी को 1,000/-प्रति काल की मांग की तो काल आना बिलकुल बंद हो गए।

सारांश में यह कह सकते हैं कि, किसी भी चीज की अति बुरी होती है एवं उसको समाप्त करने के लिये कोई न कोई अवतार उत्पन्न होता और वर्तमान में हम स्वयं ही अवतार बनकर इस अति का अंत करने में सक्षम हैं बस थोड़ा सार्थक प्रयास करना आवश्यक है। वर्ष 1981 के हिन्दी फिल्म ‘आस पास’ का यह गीत इस लेख के लिये बहुत उपयुक्त है।

हमको भी गम (सूचनाओं) ने मारा, तुमको भी गम (सूचनाओं) ने मारा
हम सबको गम (सूचनाओं) ने मारा, इस गम (सूचनाओं) को मार डालो

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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

My love for our mother tongue makes me write in simple Hindi so that people may understand easily.


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