धन खर्च में दोहरी मानसिकता क्यों, एक अनुत्तरित प्रश्न Pramod Mehta, July 8, 2023July 8, 2023 Why do people show double standards in spending money? धन(money) खर्च में व्यक्ति अक्सर दोहरी मानसिकता अपनाता है। यहाँ पर दोहरी मानसिकता से तात्पर्य है कि, बड़े-बड़े खर्चे करते समय व्यक्ति कुछ बचाने की नियत नहीं रखता वहीं दूसरी ओर छोटे खर्चों के समय विक्रय करने वाले से बहुत मोल-भाव करता है। प्रश्न इस बात का है कि, जहाँ पर क्रेता सावधानी का सिद्धांत रखना चाहिये वहाँ पर बचत वाली सोच की खिड़की बंद क्यों रहती है। जहाँ पर दान प्रवृत्ति को सम्मुख रख कर व्यवहार करना हो वहाँ पर हमारे ज्ञान की गंगा बह निकलती है। इस लेख में जीवन के चार निशान रोटी, कपड़ा, मेडिकल और मकान के संबंध हमारी क्या मानसिकता है पर विचारण है। 1. रोटी (किराने का खर्च) – सबसे पहली दोहरी मानसिकता का परिचय किराने का सामान लेते समय दिखता है । आजकल बड़े-बड़े मार्ट खुल गये हैं जहाँ पर M.R.P. पर ही घरेलू सामान मिलता है और हम बहुत खुशी-खुशी वहाँ से खरीदी करते हैं। परंतु जब वही व्यक्ति मोहल्ले के किराने वाले से खरीदता है तो उसके माथे पर बल पड़ जाते हैं कि किराने वाला बहुत महँगा सामान दे रहा है। खरीदते समय बहुत डिस्काउंट की मांग करते हैं और मोल-भाव होता है। दिल दुखाकार किया भोजन, बना अपच का कारण। 2. कपड़ा (वस्त्र पर खर्च) – दोहरी मानसिकता का दूसरा सटीक उदाहरण है बड़े-बड़े शोरूम से कपड़े खरीदना। मेरी धारणा है कि शायद ही ऐसा कोई ब्रांड शोरूम होगा जहाँ पर मोल-भाव होता हो। वहाँ व्यक्ति प्रसन्नता से मनमाने दाम में खरीदी कर लेता है। ठीक इसके विपरीत धोबी यदि दाम बड़ा दे तो उससे बहस होती है और पुरजोर कोशिश होती है कि वह 5 से 10 रुपए काम कर दे। यहाँ पर भी नगण्य बचत कर अपने आप को बहुत बड़ा सौदगर समझते हैं। धोबी से की बचत, कपड़ों में नहीं रहेगी चमक। 3. मकान (भवन निर्माण खर्च) – दोहरी मानसिकता का एक और उदाहरण है व्यक्ति लाखों-करोड़ों की मोटी राशि देकर मकान/फ्लैट खरीदता है। परंतु मकान की मरम्मत करवाते समय कारीगर,मजदूर इलेक्ट्रिशन,प्लमबर आदि से भरपूर बहस करता हैं और प्रयास रहता है कि वह कुछ कम करके कार्य करे। इस कमी के कारण कभी-कभी कार्य ठीक से नहीं हो पाता है और उस मरम्मत वाले को भला-बुरा कहते हैं। विचार करें की आपके मकान की कीमत का यह कौनसा हिस्सा है और क्षुद्र बचत की पीछे कितना तनाव सहन करते हैं। मरम्मत वाले से क्रांति, उड़ाये मन की शांति । 4. स्वास्थ्य (मेडिकल खर्च) – दोहरी मानसिकता का परिचय मेडिकल खर्चे करते समय दिखता है । इस खर्चे के समय कोई मोल-भाव की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है। ठीक इसके विपरीत स्वास्थ्य के लिये आवश्यक सब्जी एवं फल खरीदते समय तो हम इतने सजग रहते हैं जैसे वह गरीब जो चिलचिलाती धूप में ठेला लेकर खड़ा है हमको लूट रहा है। मोल-भाव करके कुछ बचाकर या थोड़ा ज्यादा तुलवाने के पश्चयात हम अपने आप को समझदार समझते हैं। परंतु आपने कभी सोचा कि उस बहुत ही छोटे सब्जी वाले के दिल पर क्या बीतती है । वह कई तरह की बददुआ भी दे देता है। गरीब का नुकसान करना, अस्पताल का द्वार खोलना । ऊपर उल्लेखित उदाहरण तो केवल संकेतात्मक है । ऐसे अनेकों स्थान जैसे सोना-चांदी-हीरा आदि जहाँ पर मोल-भाव-बहस की कोई गुंजाइश नहीं है हम लुट कर (लगभग) आ जाते हैं। और कुछ छोटे धंधे या काम करने वालों से “ऊँट के मुह में जीरा” समान बचत करके धनवान बनने का असफल प्रयास करते हैं। यदि धर्म की दृष्टि से देखा जावे तो किसी की बददुआ लेकर या किसी का दिल दुखकर या नुकसान पहुंचाकर की गयी बचत शायद ही फलदायी होगी। अच्छे जीवन प्रबंधन के लिये इस दोहरी मानसिकता का त्याग ही उत्तम व्यक्तित्व की पहचान है जो गरीब व्यक्ति के मुख से सभी जगह पहुँचती है। करो हासिल दुआएं गरीब की, खुल जायेंगी खिड़कियाँ नसीब की बन जाओगे तब धनी, तुरंत जब दे दिया गरीब के पसीने का मनी Joyful Lifestyle blogblog on lifebloggerdonationdouble standardexpensesexpensivegems of lifehealthy mindlife experiencelife lessonslife preachingsmedicalmoneymotivationpositive thinkingrepairwriter