डिप्रेशन (अवसाद) कारण और निवारण Pramod Mehta, June 16, 2022December 22, 2022 Depression – Causes & Prevention आज विश्व में डिप्रेशन (अवसाद) एक बहुत बड़ी मानसिक समस्या बन चुका है । तीव्रता से बढ़ते हुए संसार एवं नई नई तकनीक के उपयोग के कारण अपने आप को सभी के समकक्ष रखना बहुत कठिन कार्य हो गया है और इस दौरान कई बार व्यक्ति घोर निराशा में भी पहुँच जाता है। यही घोर निराशा डिप्रेशन (अवसाद/depression) का विषय बन जाती है। जिसका प्रमुख कारण है कि, व्यक्ति ने जो सोचा वह कर नहीं पाया या जो चाहा वह पा नहीं सका। इन दोनों परिस्थितियों में व्यक्ति निराश होता है और मस्तिष्क में नकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं और यह नकारात्मक्ता उसको डिप्रेशन (अवसाद/depression) की स्थिति में ले जाती है । यदि हम उक्त दोनों परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो यह पाते हैं कि प्रायः व्यक्ति अपनी सामर्थ्य से ऊपर सोच रखता है और उस परिणाम की इच्छा रखता है जो प्राप्त होना बहुत मुश्किल है। कई बार अथक प्रयास के बाद भी सफलता हासिल नहीं होती है तो भी मनुष्य डिप्रेशन (अवसाद) की स्थिति में आ सकता है परंतु इस समय यह समझना चाहिए कि जो मिल रहा है उसको प्राप्त कर लो जिससे वर्तमान की अवश्यकता पूरी हो और हम पुनः अपने प्रयास जारी रखें । ध्यान रहे जो प्राप्त है वो पर्याप्त है एवं समय की मांग है। लंबे समय तक असफलता का मंथन करना अवसाद को जन्म देना है परंतु पुनः सार्थक एवं उचित प्रयास अवसाद से दूर रख सकते हैं। सफलता समय पर न मिलने का एक प्रमुख कारण है कि हम समय का पूर्वानुमान (Predict) नहीं कर सकते कि कब समय हमारे पक्ष में होगा अतः निरंतर प्रयास हमको अवसाद से दूर रखेगा । संसार में एसे कई उदाहरण है जब व्यक्ति ने एक लंबे समय बाद सफलता प्राप्त की है । यह कहा गया है कि “There is no shortcut of success”। यदि हम शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो एक विध्यार्थी हमेशा इस सोच में रहता है की वह देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश पा कर अध्ययन करे परंतु वह यह नहीं देखता है कि उसका अतीत क्या है, उसने प्रारम्भ से ही अध्ययन की ओर कितना ध्यान दिया, क्या उसके प्रयास इतने थे कि वह उच्चतम स्कोर ला सके ? इन परिस्थ्ति में एक कहावत चरितार्थ होती है कि “जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा”। उच्च सोच रखना कोई गलत नहीं है क्योंकि जब व्यक्ति उच्च सोच रखेगा तभी सफलता प्राप्त करेगा परंतु उस सोच को कार्यान्वित करने के लिए हमारे पास उतना मन एवं संसाधन होना भी जरूरी हैं। नौकरीपेशा वालों को अवसाद होने का प्रश्न है तो वो भी किसी सीमा तक इसी सिद्धांत पर आधारित है कि समय रहते पूरी मेहनत एवं लगन से अपनी शिक्षा सम्पन्न नहीं की जिस कारण उच्च स्तर पर नहीं पहुँच सके । अधिकांशतः हर व्यक्ति की सोच रहती है की वह अपने देश में सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में सफल हो या किसी नामी कंपनी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने परंतु यह जरूरी नहीं है कि सभी को वह पद प्राप्त हो । अपने भीतर के गुणों को पहचानकर उनसे अधिकतम प्राप्ति ही सच्ची सफलता है न कि दूसरों को देख कर अपने आपको उनके समान बनाना और असफल होना। हम अपना व्यवहार एवं जीवन दूसरों की प्रतिक्रिया के आधार पर बनाते हैं जो कि सर्वथा पतन का रास्ता है । अपना एक उद्धेश्य लेकर चलना और उस पर अपनी सम्पूर्ण मेहनत करके वांछित उद्धेश्य पाना ही सच्ची सफलता है । जहां तक व्यवसायी एवं पेशेवर व्यक्तियों को होने वाले अवसाद का सवाल है तो वो भी इसलिए होता है क्योंकि हम हमेशा उस सफलता की कामना करते हैं जो एक लंबी समय अवधि के अथक प्रयास के बाद मिलती है परंतु हम चाहते हैं कि वह तुरंत प्राप्त हो जाये जो एक दम अकल्पनीय है। व्यवसाय एवं पेशे के लिए तो हमेशा यही कहा गया है कि इसके लिए धैर्य की ज़रूरत होती है एवं व्यक्ति बूढ़ा होता है और यह जवान। यहाँ पर गृहणी का उल्लेख भी जरूरी है जो अक्सर अपने परिवार की उपेक्षा का शिकार होकर डिप्रेशन (अवसाद/depression) की स्थिति में चली जाती है। अतः उसको इस स्थिति से बाहर लाना परिवार का ही दायित्व है। यदि गृहणी अपने स्वाभिमान को प्राथमिकता दे तो वह अवसाद से बहुत दूर रह सकती है। कभी-कभी डिप्रेशन (अवसाद/depression) मनुष्य को पारिवारिक उलझन/समस्या के कारण भी होता है। पारिवारिक समस्या होने की मूल जड़ अहं (EGO) है एवं इसको रखना एक प्रकार से अपनी जिमीदारियों से दूर भागना भी है । यदि परिवार का कोई भी सदस्य इस अहं से ग्रस्त है तो निश्चित रूप से वह परिवार को प्यार नहीं करता है, परिवार के प्रति समर्पण की भावना नहीं रखता है एवं परिवार की व्यवस्थाओं से अपने आप को अलग रखकर कार्य करता है। जहां प्यार एवं समर्पण होगा वहाँ अहं हो ही नहीं सकता और जब अहं नहीं होगा तो डिप्रेशन (अवसाद/depression) का प्रश्न ही नहीं पैदा होता है। परिवार प्यार, उदारता एवं समर्पण की नींव पर ही टिका है। धन एवं साधन की अपर्याप्तता भी मनुष्य को डिप्रेशन (अवसाद/depression) का कारण बन जाता है। इस स्थिति से उबरने के लिए ‘यह समय भी निकल जायगा’ के सिधान्त पर विश्वास करके धैर्य से परिस्थित का सामना करें तो वहाँ अवसाद की कोई जगह नहीं होगी। डिप्रेशन (अवसाद) की समस्या से निपटने के लिए ज़रूरी है कि, मस्तिष्क में जो नकारात्मक विचार आते है उनको दूर करने का उपाय शीघ्रता से ढूंढ लेना चाहिए अन्यथा यह समस्या विकराल रूप धरण कर लेती है। लंबे समय तक नकारात्मक विचार का मंथन करना अवसाद को जन्म देना है । नकारात्मक विचार उत्पन्न होना मनुष्य के मस्तिष्क की एक स्वाभाविक क्रिया है और इस विचारधारा को केवल सकारात्मक सोच ही विलीन कर सकती है। कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है। सशक्त मनोबल ‘Strong will power’ हमको अवसाद से बचा सकती है। भारत की एक मशहूर हिन्दी फिल्म ‘मदर इंडिया’ का एक गीत “दुनियाँ में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा” अवसाद को दूर करने का संदेश देता है । इस फिल्म की नायिका का बहुत सशक्त मनोबल दर्शाया गया है। अपने आप को इतना मज़बूत बानयें कि यदि कोई अपमान भी करे तो उसको सहने की हम में क्षमता हो, और समय आने पर जवाब भी दे सकें क्योंकि यह सब तो जीवन की एक प्रक्रिया है जिसको निभाना हमारी आवश्यकता है। हमेशा कम्फर्ट ज़ोन में नहीं रहना चाहिये जो कि हमको कमज़ोर बनाता है और जब भी कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आते हैं तो प्रायः डिप्रेशन (अवसाद/depression) की स्थिति बन जाती है। महान उपदेशिका ‘गीता’ में कहा गया है कि, “आनंददायक स्थिति से बेहतर होगा कि सत्य का रास्ता चुनों, यही एक शक्तिशाली व्यक्ति का परिचय है।” अपने आप को मजबूत रखने के लिए हर परिस्थिति से निपटने का साहस ही सबसे बड़ी दवा है। पाने का सुख नहीं रखो, खोने का दुःख न करो। अतीत को उतना ही याद रखो कितना आवश्यक हो और भविष्य को उतना ही देखो जितना हम अपनी आँखों से एक समय में दूर तक देख सकते हैं। Healthy Mind causes of depressiondepressionhealthy mindhow to come out of depressionmind detoxpositive attitudepositive thinkingpositivityprevention of depressionsuccesssympathy