प्रशंसक, आलोचक या निंदक? Pramod Mehta, July 29, 2022December 26, 2022 Admirer, Critic or Condemner व्यक्ति के व्यक्तित्व की कई विशेषताएँ होती हैं जिनमें से तीन महत्वपूर्ण हैं ‘प्रशंसक’, ‘आलोचक’ एवं ‘निंदक’ । प्रथम दो के बिना तो व्यक्ति का विकास ही अधूरा है और इच्छित सफलता भी नहीं मिल पाती परंतु तीसरी विशेषता शरीर में अपेंडिक्स के समान है जिसकी ज़रूरत नहीं है परंतु दर्द बहुत देती है। जब हम ‘किसी’ (इसमें ईश्वर भी सम्मिलित है) के द्वारा किए हुए अच्छे कार्यों के ‘प्रशंसक’ होते हैं तो वह बहुत गौरान्वित एवं शांति महसूस करता है एवं उसके बदले ब्लेसिंग्स / आशीर्वाद मिलता हैं जिनका हमेशा इंतज़ार रहता है, क्योंकि यही ऐसी अच्छाइयाँ हैं जो जीवन में अद्रश्य शक्ति के रूप में हमारा साथ छाया के समान निभाती हैं। ‘प्रशंसक’ होने के लिये विशाल हृदय की आवश्यकता होती है, क्योंकि उसके मुख निकले दो शब्द दूसरे के लिए संजीवनी बन जाते हैं और उसके जवाब में सामने वाले के दिल से निकली हुई ब्लेसिंग्स वरदान बनकर हमको सफलता के शिखर पर बिठाती है। ‘प्रशंसक’ बच्चों के विकास की पहली सीड़ी है, युवाओं के लिये प्रेरणा है क्योंकि उनको देश के लिये भागीरथी प्रयास करने हैं, गृहणी के लिये आत्म सम्मान है जिसकी ताक़त से वह परिवार एवं घर को स्वर्ग बना देती है, बुजुर्गों के लिये उत्साह का टानिक है जिसके सहारे वे जी सकते हैं, सैनिकों का मनोबल है जो दुश्मन के ‘दाँत खट्टे’ कर सकें एवं कलाकारों के लिये भगवान का रूप है जिससे वे सफलता हासिल कर सकें। ‘प्रशंसक’ बनकर न केवल हम अपने मन के कुएँ को संतुष्टियों के अमृत से भरते हैं वरन दूसरों के लिये प्रेम की गंगा बहाते हैं। हिन्दी फिल्म ‘1942 a love story’ के एक गीत में नायक ने नायिका की प्रशंसा 21 उपाधियाँ देकर की है में तो केवल प्रशंसा के दो शब्द देने की ही गुहार कर रहा हूँ। ‘प्रशंसक’ के बाद ‘आलोचक’ होना दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता है। ‘आलोचक’ की भूमिका गुणों, अवगुणों एवं विशेषताओं के विश्लेषक की है क्योंकि वह ‘दूध का धूध पानी का पानी’ कर देता है। प्रगति के पथ की पहली पायदान पर पैर रखते समय ‘आलोचक’ दिशासूचक है जो कभी भी दिग्भ्रमित नहीं होने देगा। ‘आलोचक’ अंधेरे में मार्गदर्शक है तो रोशनी में दिग्दर्शक। ‘आलोचक’ वह चिकित्सक है जो मीठी के साथ-साथ खट्टी एवं कड़वी दवा भी देता है जिसके कारण उसको कभी-कभी ना पसंद भी किया जाता है, परंतु दवा कोई भी हो इलाज़ सही है तो सभी सहनीय हैं। तीसरी महत्वपूर्ण विशेषता है ‘निंदक’ होना जिसमें अवगुणों के ढूंढने की कला होती है और कारण या अकारण, संबन्धित या असंबंधित के संबंध में नकारात्मक विचारों की अभिव्यक्ति संबन्धित की अनुपस्थिति में करना उनकी विशेषता है। मेरी मान्यता है कि, ऐसा ‘निंदक’ होना अपने आप में एक depressed व्यक्तित्व की निशानी है। वैसे तो कोई भी ‘निंदक’ होना नहीं चाहता है लेकिन कभी-कभी परिस्थियाँ मजबूर कर देती है । कुछ वास्तविक अपवादों को छोडकर ‘निंदक’ अपने स्वयं की कमजोरियों/कमियों/गलतियों को दबाने/छिपाने या व्यर्थ ही समय व्यतित करने के लिए नकारात्मक विचारों की अभिव्यक्ति करता हैं। परिस्थिति जो भी हो, लगभग हर धर्म एवं समाज में ‘निंदक’ का कोई सम्मान नहीं है। अधिकांश फिल्मों में खलनायक ‘निंदक’ की भूमिका बख़ूबी निभाता है । निंदा के स्थान पर यदि सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाएं तो सभी के लिए अधिक उपयुक्त होगा । ‘प्रशंसक’, ‘आलोचक’ एवं ‘निंदक’ अपनी अपनी विशेषता के साथ आज समाज में उपस्थिती दर्ज़ किए हुए हैं और यह हम पर निर्भर है कि, हमें कब, क्यूँ, क्या, एवं कहाँ होना चाहिए । हमारे माननीय पूर्व प्रधान मंत्री स्व.श्री अटल बिहारी बाजपायी जी ने हमेशा एक अच्छे ‘प्रशंसक’ एवं उत्तम ‘आलोचक’ की भूमिका बड़ी खूबसूरती से निभायी है चाहे वो सत्ता में रहे हों या विपक्ष में। सारांश में प्रशंसक’ प्रशासक है (Admirer is Ruler), आलोचक तराशक है (Critic is Carver) और निंदक अप्रिय है (Condemner is Scanner) ‘प्रशंसक’ के प्रकाश से, आलोचक’ की चतुरता से प्रशंसा के लफ्जों से, ‘निंदक’ के अंधकार को, लुप्त करेंगे संसार से। Healthy Mind