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‘प्रतिक्रिया’ आत्मविश्वास एवं बौद्धिक स्तर का दर्पण

Pramod Mehta, March 27, 2023March 27, 2023

“Reaction – Mirror of personality“

व्यक्ति का जीवन एक क्रिया है क्योंकि उसकी सभी गतिविधियाँ उसी पर केंद्रित होती हैं और इन क्रियायों पर किसी दूसरे के द्वारा की गई टिप्पणी ही ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) है।

‘प्रतिक्रिया’ का हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है या यह भी कह सकते हैं कि, यह जीवन का एक हिस्सा है क्योंकि यह न हो तो मस्तिष्क निष्क्रिय सा हो जायेगा।

‘प्रतिक्रिया’ के विभिन्न रूप हैं परंतु यहाँ पर इसका तात्पर्य है किसी भी विषय पर अपने शब्दों/संवादों से मत/टिप्पणी व्यक्त करना । चूंकि हमारी ‘प्रतिक्रिया’ ही हमारा व्यक्तित्व दर्शाती है इसलिये इसको करने के पूर्व एवं करते समय बहुत सावधानी रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि जरा सी चूक से अर्थ का अनर्थ हो सकता है और हमारी छवि बिगड़ सकती है।

इस पर पूर्ण नियंत्रण पाना बहुत कठिन कार्य है और इस पर विजय तभी प्राप्त होगी जब हम एक  अच्छे श्रोता बने और ‘तोल मोल के बोलें’। ‘प्रतिक्रिया’ के विभिन्न पहलुओं पर इस लेख में विचारण है।

हमारे शब्द हमारी ताकत

‘प्रतिक्रिया’ (reaction) में बोले गए शब्द हमारी ताकत को दर्शाते हैं चूंकि शाब्दिक  शक्ति भी व्यक्ति की संपत्ति का स्वरूप होता है अतः इसका व्यय भी किफायत से करना बहुत आवश्यक है इसलिये यहाँ पर शब्दों की अभिव्यक्ति (‘प्रतिक्रिया’)(reaction) के लिए मितव्ययी होना भी बहुत जरूरी है।

धन और शब्दों की तुलना की जाए तो हम यह पाते हैं कि, धन को अर्जन करने में परिश्रम लगता है परंतु अनर्गल शब्दों के अर्जन में कोई परिश्रम नहीं होता इसलिये धन अधिकतर किफायत से खर्च होता है परंतु शब्द पर यह ध्यान नहीं जाता है जबकि इनकी महत्ता धन से कहीं अधिक है। ‘शब्द’ धन एवं बल के अर्जन का साधन भी है और दोनों के विसर्जन का कारण भी बन सकते हैं ।

संबंधों का सक्षम संबल

‘प्रतिक्रिया’ व्यक्ति के रिश्तों/संबंधों को मज़बूत आधार भी देती है । इसको व्यक्त करते समय इस तथ्य का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक है कि, वह किसी को आहत तो नहीं कर रही है या हमारा दंभ / अहं भाव तो तो प्रदर्शित नहीं हो रहा है ।

रिश्तों के स्थायित्व के लिये यह बहुत आवश्यक है कि, ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) से दूसरों के सम्मान में वृद्धि हो, वह तनावग्रस्त न हो पाये, इसके मूल में सत्य का आधार हो क्योंकि परिवार, संबंधी एवं समाजजन आपको विश्वास का वट वृक्ष मानकर व्यवहार करते हैं। पारिवारिक संबंधों में ‘प्रतिक्रिया’ को जहां तक संभव हो टालना ही श्रेयस्कर है ।

व्यक्तित्व का दर्पण

‘प्रतिक्रिया’ व्यक्ति की शख्सियत का आईना होती है जिससे कुछ छुपा नहीं रहता है। यह व्यक्तित्व को फर्श से अर्श पर ले जा सकती है और उसका उलट भी हो सकता है। ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) पूर्वाग्रह से ग्रसित न होकर निष्पक्ष हो । एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान है कि ‘प्रतिक्रिया’ व्यक्त तभी करना चाहिये जब वह अवश्यंभावी हो । समय पर सटीक ‘प्रतिक्रिया’ व्यक्ति के आत्मविश्वास एवं बौद्धिक स्तर की पहचान है ।

निंदा रहित ‘प्रतिक्रिया’

व्यक्ति का प्रयास ऐसा हो कि ‘प्रतिक्रिया’ कभी भी निंदा का रूप धारण न करे अर्थात यह तटस्थ हो क्योंकि इसमें बोले गये शब्द हमेशा कल्याणकारी ही होना चाहिये है। क्रिया की ‘प्रतिक्रिया’ जीवन की सहज अंग है परंतु इस पर नियंत्रण भी उतना ही ज़रूरी है क्योंकि इसके कारण दुनिया बनती एवं बिगड़ती है जिसका स्पष्ट उदाहरण ‘महाभारत’ है जिसमें पांडवों की पत्नी द्रोपदी की कौरवों के प्रति की गयी ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) ने कौरव व पांडवों को आपस में जानीदुश्मन बना दिया ।

‘प्रतिक्रिया’ व्यक्त करते समय व्यक्ति को अपने भीतर के सभी तरह के भावों को नियंत्रण में रखना एवं नकारात्मक न होना बहुत वांछनीय है ।

‘प्रतिक्रिया’ कब, क्यों, कहाँ और कैसे

‘प्रतिक्रिया’ की प्रथम आवश्यकता है कि अनजान विषय या शख्स के संबंध में कोई वक्तव्य न दिया जावे अर्थात यह तब ही दी जावे जब हमको उस क्रिया से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी हो अन्यथा अपने आप को इससे दूर रखें तो बेहतर होगा।

परंतु जहां पर ‘प्रतिक्रिया’ व्यक्त करने से विकराल समस्या समस्या का समाधान निकलता हो तब वहाँ पर अपने विचारों  का उद्बोधन अवश्य ही होना चाहिये ।  

जैसा कि ‘महाभारत’ में अर्जुन के युद्ध न करने की इच्छा (क्रिया) के कारण श्रीकृषण ने ‘गीता’ का महान उपदेश (‘प्रतिक्रिया’)(reaction) देकर कौरवों पर विजय दिलवायी ।

‘प्रति क्रिया’ व्यक्त करते समय यह ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक है कि आसपास की परिस्थतियाँ अनुकूल हैं या नहीं या जिस मंच से यह व्यक्त की जा रही है उसके लिये उचित है या नहीं । इसकी प्रक्रिया न तो बहुत लंबी हो और न ही बहुत अल्प और जिसके लिये दी जा रही उसको समझने योग्य हो। ‘प्रतिक्रिया’ फलदायी तभी सिद्ध होगी जब हमने उसके कब, क्यों, कहाँ और कैसे का पूर्ण ध्यान रखा हो।

‘प्रतिक्रिया’ के परिणाम

जिस तरह घर क्रय करते समय हम वास्तुशास्त्र के अनुरूप मुख्य रूप से दसों दिशाओं का ध्यान रखते हैं ठीक इसी तरह जीवन रूपी गृह के वास्तु के लिये ‘प्रतिक्रिया’ व्यक्त करते समय भी सभी संबंधितों के हितों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। यदि यह ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम जिंदगी के लिये बहुत भयावह सिद्ध हो सकते हैं। एक कहावत है “बिना विचारे जो करे वो पीछे पछताए” इसलिये ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) के परिणामों को ध्यान में रखकर बहुत सोच समझकर ही व्यक्त करना महानतम कार्य है। सार्थक ‘प्रतिक्रिया’ ही समाज एवं देश हित के लिये उचित होती है।  

‘प्रतिक्रिया’ शब्द स्त्रीलिंग है और एक स्त्री में विनम्रता, कोमलता, सहनशीलता, एवं दया का भाव होता है इसलिये  ‘प्रतिक्रिया’ में यह सब भी होना एक अच्छे चरित्र की निशानी है। ‘प्रतिक्रिया’ में बोले गये शब्द किसी का जीवन बना भी सकते हैं नष्ट भी कर सकते हैं इसलिये ‘प्रतिक्रिया’ के शब्दों, भावों एवं मुद्राओं का ऐसा संकलन हो कि वे ब्रह्म वाक्य बन जायें । ‘प्रतिक्रिया’ (reaction) के लिये यही संदेश दिया जा सकता है-

“प्रतिक्रियायेँ प्रक्ष्य (विनाश) की पराकाष्ठा पर प्रचंडता से प्रयाण न करें” 
अतः तेल देखो तेल की धार देखो’ (wait & watch)
इसलिये हमारा लक्ष्य हमेशा,  ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ हो
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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

My love for our mother tongue makes me write in simple Hindi so that people may understand easily.


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