परिग्रह/संग्रह की आदत, जीवन में आफत Pramod Mehta, May 22, 2023May 22, 2023 मानव में एक आदत बहुत पायी जाती है जिसका नाम है परिग्रह/संग्रह (clutter) करना । यह परिग्रह/संग्रह किसी भी प्रकार का हो सकता है चाहे वह धन का हो, वस्तुओं का हो, बुरी आदतों का हो या गलत धारणाओं का । इस आदत के कारण व्यक्ति लगभग हमेशा एक अद्रश्य तनाव में रहता है । धन एवं वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक संग्रह व्यक्ति को उसके अस्तित्व होने का संतोष जरूर देगा परंतु संतुष्टि नहीं होगी । क्योंकि, संतुष्टि प्राप्त करने के लिये वस्तु का उपयोग आवश्यक है और परिग्रह/संग्रह में वह मौजूद नहीं है। बुरी आदतों एवं गलत धारणाओं का संग्रह स्वयं के लिये तो अनुचित है ही वरन अपने इर्द-गिर्द रहने वालों के लिये भी बहुत खतरनाक है । परिग्रह/संग्रह की आदत से होने वाले नुकसान एवं इनको करने के फ़ायदों के संबंध में इस लेख में विचारण है। वस्तु का परिग्रह, धन का अपव्यय – जिस प्रकार से रुका हुआ पानी सड़ कर दुर्गंध देने लगता है ठीक उसी तरह परिग्रह/संग्रह की हुई वस्तुएं भी उपयोग में न आने के कारण खराब या अनुपयोगी हो जाती हैं । और, ऐसा करना न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिये परेशानी का सबब हैं बल्कि धन का नाश व देश kkए संसाधनों की हानि है। पृथ्वी पर स्थान सीमित है और परिग्रह/संग्रह करके स्थान को घेरना समाजिक अपराध के समान है। सुविधाजनक जीवन लिये वस्तु संग्रह उचित हो सकता है परंतु इससे अधिक तो वस्तु का दुरपयोग ही कहलाएगा । यदि संग्रह कर भी लिया तो हम एक नई चिंता को आमंत्रित करते हैं और वह है इसको बनाए (maintain) रखना जिसमें धन एवं समय का अपव्यय निश्चित है । इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के काल में लुभावने विज्ञापन ही उत्पाद को बेचने का प्रमुख साधन है । अतः उपयोगिता, गुणवत्ता, मितव्ययता एवं आवश्यकता का पूरा-पूरा ध्यान रखकर ही किसी वस्तु का क्रय करना ही हमको परिग्रह एवं संग्रहण (clutter) से बचा पायगा। अधिकतर लोग विज्ञापनों के जाल में फंसकर ‘शरीर एक साबुन अनेक’ की राह पर चल निकले हैं और सीमित स्थान होते हुए भी असीमित वस्तुएं को अनावश्यक ही उपयोग में ला रहे हैं । धन का परिग्रह, समाज का विग्रह – भविष्य की जरूरतों के लिये धन को संग्रह करके रखना तो जीवन का अंग है । यदि, उसको उचित माध्यम में निवेश करके रखा जावे जिससे उसका उपयोग राष्ट्र की योजनाओं में होकर देश के लिये एक महत्वपूर्ण सेवा का कार्य होगा। अन्यथा, यही धन वस्तु में परिणित होकर कूड़ा-करकट हो जायेगा। धन का परिग्रह मुख्य रूप से तब होता है जब वह अनुचित तरीके से अर्जित किया गया हो । क्योंकि, वह आधिकारिक रूप से उपयोग में नहीं लाया जा सकता है । ऐसा धन व्यक्ति को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है । इस प्रकार का संग्रह करने वाले एक गाना हमेशा गुनगुनाते हैं “किसी राह पर किसी मोड़ कहीं चल न देना तू छोड़ कर” । बुरी आदत का संग्रह जीवन में दुराग्रह – किसी भी प्रकार की बुरी आदतों का संग्रहण होना भी एक प्रकार का परिग्रह है । एक बुरी आदत अनेक बुरी आदतों को साथ लाती है धीरे-धीरे उनका भंडार बन जाता है और अंत में विस्फोट होकर जिंदगी का असामान्य अंत हो जाता । हमारी कोशिश यह होना चाहिये कि, इन आदतों की दस्तक होने पर दरवाज़ा की ओर देखे ही नहीं तभी बड़ी मुसीबतों से बच पायेंगे। दस्तक न हो इसका भी उपाय है कि, ऐसी संगत या माहौल से ही दूरी बनाये रखें क्योंकि वे हमको बनाने नहीं बिगाड़ने आये हैं। गलत धारणाओं का संग्रहण, पूर्वाग्रह को निमन्त्रण – व्यक्ति जीवन में अक्सर पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहता है जो उसमें एकाकीपन की पारिवारिक एवं सामाजिक बुराई पैदा कर देता है। इस पूर्वाग्रह का मुख्य कारण, किसी के प्रति बिना सोचे,समझे एवं जाने अपने मस्तिष्क में कोई विपरीत धारणा का निर्माण करके भंडारण करते जाना । यह विपरीत धारणा हमारे मस्तिष्क के एक प्रबल गुण ‘नकारात्मकता’ के कारण होती है । गलत धारणायेँ भविष्य में दिमाग में एक कूड़े-करकट की गंदगी का रूप धारण कर स्वयं को विनाश की ओर धकेलती ही हैं । साथ ही साथ, व्यक्ति एकाकी जीवन की ओर अग्रसर होकर बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है विशेष रूप से अवसाद (डिप्रेशन) । इस प्रकार की स्थति से बचने एक कारगर उपाय है कि अपनी सोच में यह अमल में लाएं “सभी अपने-अपने स्थान पर सही हैं, में भी गलत हो सकता हूँ क्योंकि में मानव हूँ, भगवान नहीं”। मोटे तौर पर देखा जाय तो परिग्रह एवं संग्रह (clutter) के मूल में ‘दिखावा’ एक बहुत बड़ा किरदार है जो हमेशा व्यक्ति के मस्तिष्क पर हावी रहता है। जबकि देखा यह गया है कि इस संसार में किसी को किसी की कोई परवाह नहीं है सब अपने आप में व्यस्त एवं मस्त हैं और हमारे दिखावे से कोई लेना देना नहीं बल्कि हो सकता है ऐसा करने पर पीठ पीछे जग हँसाई हो । वर्तमान युग में लगभग सभी वस्तु सभी समय पर सभी जगह पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है (कुछ अपवाद छोड़कर) तो उनका संग्रहण एवं परिग्रह क्यों ? आज आवश्यकता इस बात है कि हम अपनी आदत एवं सोच बदलें एवं यथार्थता, अपनी प्राथमिकताओं व जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करें । जीवन में चार चंद लग जायेंगे यदि परिग्रह/संग्रह से दूर रहे तो। जैन धर्म का तो मूलमंत्र हे ‘परिग्रह न करना’। एक कहावत है “ईश्वर इतना दीजिये जामे कुटुंब समाए, में भी भूखा न रहूँ, साधु भी भूखा न जाय” । वस्तु, धन संग्रह कर-कर, धनवान हुआ न कोई,मानवता धर कर, इंसान ही इंसान का रक्षक होई Healthy Mind Joyful Lifestyle blog on lifecluttered housecluttered mindhealthy mindlife lessons