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नारी का सम्मान – हमारी शान

Pramod Mehta, March 8, 2023March 16, 2023

प्रतिवर्ष 8 मार्च को स्त्रियों के सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिवस मनाने का प्रमुख कारण है महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलें एवं लैंगिक असमानता दूर हो । कुछ देशों में महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं था जिसके विरुद्ध महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया तब महिलाओं को पुरुषों के समान मताधिकार प्राप्त हुआ और भारत में आज़ादी के बाद ।

यह तो बहुत उत्तम प्रयास थे कि महिलाओं को भी अपने पसंद का लोक-प्रतिनिधि चुनने का हक़ मिला। बात यहीं समाप्त नहीं होती है। पहला तो प्रश्न यह है कि, समानता का दर्जा देने वाले कौन तो लाज़िमी है कि पुरुष ही होंगे जिसका सीधा सा मतलब है कि, पुरुषों ने सब पर एकाधिकार कर रखा था । इस लेख के माध्यम स्त्री के विभिन्न रूपों की महानता के लिये कुछ विचार प्रस्तुत हैं। 

माँ

माँ के रूप में स्त्री का संतान को जन्म देना और उसके लालन-पालन करने के कार्य को कुछ भी कहना सूर्य को रोशनी दिखाने के समान है। सही अर्थों में तो संसार का संचालन स्त्री ही करती है। माँ के रूप में जो दुःख एवं पीड़ा होती है वह संतान के वात्सल्य से कपूर की तरह उड़ जाती है । क्या माँ के रूप की कोई समानता है इस संसार में, नहीं क्योंकि वह ईश्वर की परिचायक है जिसकी तुलना करना असंभव है। हिन्दी फिल्म ‘मदर इंडिया’ में माँ के स्वरूप को जिस तरह से चित्रित किया गया वह एक मिसाल है। 

जीवन संगिनी

एक लड़की 20 से 30 साल तक का जीवन अपने मन मर्जी से रक्त-संबंधियों के साथ व्यतीत करने बाद एक अजनबी एवं उसके परिवार के साथ आगे का जीवन व्यतीत करने सहर्ष मायका छोड़ देती है । स्त्री के इस त्याग, समर्पण एवं संघर्ष की बराबरी कोई भी नहीं कर सकता और यह कार्य उसको और उच्च स्थान की हकदार बनाता है।  एक स्त्री की शक्ति का अंदाजा इससे ही मालूम पड़ता है कि, हिन्दू धर्म के अनुसार वह अपने पति के प्राण भी वापस ला सकती है (सत्यवान-सावित्री)।

बहन

बहना के रूप में स्त्री जो सम्मान एवं प्रेम अपने भाई को देती है उसको देख प्रकृति को भी अपनी कृति पर गर्व होता ही है, क्योंकि सावन के महीने में रक्षाबंधन के उत्सव को प्रकृति अपनी प्रसन्नता लहलयाति हरियाली से ज़ाहिर करके गर्व करती है। मेरे विचार से एक विवाहित बहन की सबसे अधिक प्रसन्नता तब देखने को मिलती जब भाई उसके घर आता है । यहाँ पर भी स्त्री का स्थान समानता से ऊपर ही है।

बेटी

बेटी के रूप में स्त्री हर काल खंड में देवी का रूप है एवं उनकी पूजा भी की जाती है। वर्तमान समय में तो बेटियाँ माता-पिता के लिये वरदान साबित हो रही हैं। स्त्री  का यह रूप भी उसको वरिष्ठ स्थान का सम्मान देता है। भारत की बेटियों ने तो विश्व में अपना परचम फहराया है। बेटियों के लिये वर्ष 1968 की हिन्दी फिल्म ‘नीलकमल’ का बिदाई का गीत(बाबुल की दुआएं लेती जा ) आज भीअश्रु बहा देता है।

श्रेष्ठ वही कहलायेगा जिसके पास श्रेष्ठतम गुण हो या जिसके पास ऐसी दौलत हो जो किसी अन्य के पास न हो इसी कारण स्त्री समान न होकर उससे भी कहीं उच्च स्थान रखती है जिसकी व्याख्या जापान में पायी जाने वाली मशहूर मछली ‘Koi’ के गुणों से की जा सकती है ।

‘Koi’ मछली का नाम शायद सभी ने सुना होगा क्योंकि यह एक विशेष जलीय प्राणी है। इसमें एक बहुत अनोखी विशेषता है, इसके शरीर का विकास जल के आयतन पर निर्भर करता है छोटे बर्तन में इसका आकार छोटा और बड़े में बड़ा। यह परिस्थितियों के अनुसार अपना आकार बना लेती है।

इसकी अन्य विशेषताएँ जैसे जापानी लोग इसको प्रेम, मित्रता,दीर्घ आयु, किस्मत  का प्रतीक मानते हैं, यह बहुरंगी व सर्वाहारी होती है एवं अन्य प्रकार की मछली को अपने समूह में बर्दाश्त नहीं करती है। ‘कोई’ मछली की बहुत सी विशेषताएँ स्त्री से मिलती-जुलती हैं। इस लेख में कोई मछली की विशेषताओं को स्त्री के संदर्भ में भी दृष्टिगोचर हैं

परिस्थिति के अनुरूप –  स्त्री में भी इस मछली की तरह परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढालने की विशेषता है। माँ के रूप में ईश्वर का प्रतिनिधित्व, पत्नी, बहन एवं बेटी के रूप में मित्रता की पहचान रखने वाली स्त्री की बराबरी नहीं है। अधिक आयु होने के कारण कोई मछली पैतृक संपत्ति की तरह होती, ठीक इसी तरह माँ के संस्कारों की संपत्ति बच्चों को पीढ़ियों तक साथ देती हैं।

दीर्घ आयु एवं किस्मत की प्रतीक – ‘कोइ’ मछली की आयु बहुत होकर मालिक का साथ देती है । एक स्त्री भी अपने परिवार का जीवन पर्यंत साथ देती है,पति की अनुपस्थिति में भी घर की बागडोर मज़बूती से संभाल कर रखती है । इस मछली को रखना अच्छी किस्मत की निशानी है इसी तरह महिलायें भी अपने परिवार की किस्मत सवारने में किसी भी तरह की कसर बाक़ी नहीं रहने देती हैं।

बहुरंगी एवं सर्वाहारी – यह मछली विभिन्न रंगो में पायी जाने के कारण सौंदर्य का प्रतीक है एवं भोजन के संबंध में इनकी पहचान है जो मिल गया खा लिया । स्त्री भी सौंदर्य की देवी मानी जाती है और जो मिल गया उसको मुकद्दर समझ लिया की विशेषता के लिये स्त्री जाति तो प्राचीन काल से आज तक प्रसिद्ध है।

अपनों के संग मलंग – ‘कोइ’ मछली अपने समूह में रहना पसंद करती है यदि कोई अन्य प्रकार की मछली समूह में आने का प्रयास करे तो वह उसको रौब से भगाती है। एक स्त्री भी अपने परिवार एवं मेलजोल वालों के साथ ही रहकर प्रसन्न रहती है और अपरिचित के साथ अपनी खुशियाँ बाँटना पसंद नहीं है ।   

इतनी विशेषताओं के बावजूद स्त्री की कुछ विशेषताओं को कमज़ोरी क़रार करके उनके विकास का रोड़ा बना दिया गया, जबकि यह विशेषताएँ ही उनकी शक्ति हैं । स्त्री के पास शर्म, सौंदर्य, सहनशीलता, सेवा, समर्पण जैसी दौलत है जिसको खोने के डर बना रहता है इसलिये वह मन से कमज़ोर अनुभव करती है परंतु उनका आत्मबल सबसे अधिक होता है । एक स्त्री पत्नी, माँ, बहन, बेटी, भाभी  एवं अन्य रिश्तों को निभाने के साथ-साथ सरकार, समाज सेवा, प्रशासन, देश-सेवा, उद्योग, नौकरी एवं पेशे (profession) के क्षेत्र में अग्रणी सेवाएं प्रदान करके न केवल परिवार, समाज का नाम ऊंचा किया है बल्कि देश का नाम भी रोशन किया है। इतिहास से लेकर वर्तमान तक महिलाओं का हर क्षेत्र में योगदान अविस्मरणीय था, है एवं रहेगा। 

है नारी तुम,
ईश्वर की परिचायक, प्रकृति का उपहार हो
महारानी से वीरांगना बनी, वतन के लिए लक्ष्मी बाई  हो
वात्सल्य की मिसाल, बलिदान की पहचान, पन्ना धाय हो
फहराया है परचम तुमने संसार में, शक्ति का पर्याय हो बनी ब्रह्मांड की अद्भुत रचना, पृथ्वी के लिये प्राण हो
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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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