निर्णय – मइक्रोस्कोप या टेलिस्कोप लगा कर Pramod Mehta, February 21, 2023March 13, 2023 मनुष्य को जीवन में अकसर कुछ अहम निर्णय लेने होते है जिनको लेने के पूर्व बहुत सारे तथ्य हमारे समक्ष मौजूद होते हैं उनको ध्यान में रखते हुए निर्णय की प्रक्रिया पूर्ण करनी होती है । कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जिनको अमल में लाना ही पड़ता है और कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको नजरंदाज भी किया जा सकता है । इन तथ्यों को दो तरीकों से देखा जा सकता है प्रथम मइक्रोस्कोप सोच और दूसरी टेलिस्कोप सोच दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं और जो भी अपनायी जाये उससे निकलने वाले परिणाम सब के लिये सुविधाजनक हों। किन परिस्थितियों में कौन से सोच का अनुसरण किया जाये इस पर इस लेख में विचारण है। पारिवारिक संबंध – व्यक्ति को अपने परिवार के संबंधों में कभी भी सूक्ष्मदर्शी का उपयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि यह उन कमियों को भी दिखा देता है जिनका न देखना ज्यादा उचित होता है । कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं है कुछ न कुछ तो कमियाँ अवश्य ही रहती हैं और इन कमियों को सूक्ष्मदर्शी से देखा तो संभव है संबंध समाप्त हो जायें । संबंध टूटने का अर्थ है हम कमजोर हो गये हैं अतः पारिवारिक संबंधों में हमेशा टेलिस्कोप का उपयोग करना उत्तम है जो बारीकियों को न दिखाकर संबंध का वृहद रूप दिखाता है एवं दूरियाँ घट जाती है और संबंध चिर स्थाई हो जाते हैं। संबंधों को निभाने के लिये एक ही युक्ति कही जाती है “बड़ा दिल रखो छोटी बातों पर गौर न करो”। मित्रता – मित्रता करते समय सूक्ष्मदर्शी का उपयोग बहुत आवश्यक है क्योंकि हम किसी अपरिचित को अपना बनाना चाह रहे हैं और वह हमारा राज़दार भी हो जाता है अतः उसकी सभी विशेषताओं का बारीकी से विश्लेषण करके ही मित्रता का कदम आगे बढ़ाना चाहिये। यहाँ पर टेलिस्कोप का उपयोग उचित नहीं है क्योंकि वह हमको उन बारीकियों से परिचित नहीं करवाता है जो बहुत आवश्यक हैं। व्यापारिक साथी – व्यवसाय में पार्टनर चुनते समय हमेशा सूक्ष्मदर्शी होना उचित है क्योंकि यह हमारी आजीविका का प्रश्न है जहां पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। वर्तमान में वित्तीय संस्थानों के सूक्ष्मदर्शी न होने के कारण ही बहुत बड़ी-बड़ी हानियां हो रही है। जीवन साथी का चुनाव – यह एक बहुत ही पेचीदा विषय है कि, जीवन साथी के चुनाव के समय सूक्ष्मदर्शी या दूरदर्शी का उपयोग करें । यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो पायेंगे कि, उस समय जीवन साथी के चुनाव के लिये टेलिस्कोप का उपयोग होता था अर्थात वृहद रूप से देखकर संबंध बनाये जाते थे और वे लंबे समय तक निभाये भी जाते थे। वर्तमान में स्थिति बदल चुकी है क्योंकि आजकल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग बहुतायत हो गया है। मेरा मत है कि, जीवन साथी के चुनाव में टेलिस्कोप का उपयोग उचित है क्योंकि बारीकी से देखने में चुनाव अत्यंत ही कठिन हो सकता है फिर भी यह गारंटी नहीं है कि, वह लंबे समय तक टिक सके। कहा जाता है मानव की प्रकृति को भगवान भी नहीं समझ पाये हैं हम इंसान क्या चीज हैं। वस्तु का चुनाव – भौतिक वस्तु के चुनाव के समय टेलिस्कोप एवं मइक्रोस्कोप दोनों का उपयोग किया जा सकता है क्योंकि वस्तु की प्रकृति, कीमत एवं उपलब्धता के अनुसार यह निर्धारित करना पड़ता है कि इसकी विशेषताओं को बारीकी से देखा जाये या बृहद रूप देखा जाये । वृत्ति या पेशे का चुनाव – व्यक्ति के जीवन का प्रारंभ विद्यार्थी जीवन से होता है क्योंकि बचपन की अवस्था में वह स्वयं निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहता अतः उसके माता-पिता ही समुचित परिस्थिति को विचार कर योग्य निर्णय लेते है। परंतु जब उच्च शिक्षा के संबंध में निर्णय लेने का अवसर आता है तो माता-पिता एवं विद्यार्थी वृत्ति (Career) के चुनाव में बहुत असमंजस की स्थिति में रहते हैं। वृत्ति (Career) के निर्णय के समय मइक्रोस्कोप का उपयोग बहुत आवश्यक है जो हमको हर उस बारीकी से परिचित करवाता है जो हमारे भविष्य को निर्धारित करेगी क्योंकि जरा सी चूक जीवन भर के लिये परेशानी का सबब बन सकती है। समय कभी भी वापस नहीं आता है अतः सभी बारीकियों को ध्यान में रख कर निर्णय लेना उचित होता है। जीवन के प्रति नज़रिया – टेलिस्कोप की दृष्टि व्यक्ति को शीघ्रता से निर्णय लेने में सफल बनाती है क्योंकि जीवन में बहुत से निर्णय ऐसे भी होते हैं जहाँ पर समय पर शीघ्रता से निर्णय लेना अति आवश्यक होता है अतः टेलिस्कोप से परिस्थितियों को देख कर हम तुरंत निर्णय ले सकते हैं। मेरे मत में जिंदगी को अधिकतर टेलिस्कोप की दृष्टि देखकर जीना चाहिये क्योंकि जहां एक पल का भरोसा नहीं है वहाँ हम बहुत बारीकी में चले गये तो संभव है जीवन आनंद की अनुभूति समस्याओं के समुद्र में डूब जाएगी । जीवन को बारीकी से देखने का कार्य विधाता का है न की मानव का क्योंकि उसको तो संसार की अनमोल कृति मिली है फिर उसकी सूक्ष्मता में जाने से क्या अर्थ है। जीवन का आनंद कछुए की तरह लेना चाहिये जिसने दूरी की बारीकी न देखकर प्रयास की दूरदर्शिता से प्रयाण किया और सफलता प्राप्त की । मइक्रोस्कोप की नज़र किसी भी वस्तु या प्राणी की बारीक से बारीक विशेषता को स्पष्ट दर्शित करती है परंतु प्रत्येक अवसर पर बहुत बारीकी उचित नहीं होती है क्योंकि दुनिया का कोई भी प्राणी या वस्तु शुद्ध नहीं है कुछ न कुछ तो नकारात्मकता तो पायी ही जाती है जिसकी उपेक्षा करना ही उचित है तभी हम एक सुन्दर जीवन की कल्पना कर सकते हैं। श्री मद्भागवद्गीता का एक उपदेश बहुत उपयुक्त है | “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” आप अपना कर्तव्य करें परंतु कर्म फल की बारीकियों में न जायें Healthy Mind Positive Thinking