में ‘स्वयं, हूँ Pramod Mehta, October 5, 2022December 5, 2022 Myself एक दिन मेरे मन के दरवाज़े पर दस्तक हुई और उसको खोला तो सामने ‘स्वयं’ था जिसने मेरे हृदय में निवास की इच्छा प्रगट की, मेंने गदगद हो कर दिल का द्वार खोल दिया परंतु यह क्या ! ‘स्वयं’ ने मेरे दिल में निवास के प्रस्ताव को स्वीकार करने में असमर्थता बताई क्योंकि वहाँ पर बैठने हेतु पंचासन (विवेक, प्रेम, त्याग, धैर्यता के पायों एवं आनंद के प्लेटफार्म से बना हुआ आसन) उपलभ्ध नहीं था । में सोच में पड़ गया कि मेरे पास पंचासन क्यों नहीं है? यह तो मेरे जीवन के लिये आवश्यक सामग्री है । जो अपने हृदय में प्रवेश नहीं कर पा रहा है वो किसी अन्य के दिल में कैसे स्थान बना पायगा। यही सोच में डूबा में तैयार हो कर पंचासन लेने बाज़ार में निकल गया । विवेक का पाया (Rational Pillar) – एक दुकान पर लिखा था यहाँ बुद्धि मिलती है, मेंने बरबस ही उस दुकान में प्रवेश किया और पूछा यहाँ विवेक का पाया मिलता है ? दुकान का मालिक बोला हाँ मिलता है पर इसकी कीमत पैसा न होकर चार वचन देना होंगे । 1-आप कभी भी झूठ नहीं बोलोगे, 2-बुद्धी का सदुपयोग करोगे, 3-आपके मन में हमेशा आदर का भाव रहेगा एवं 4-कोई भी कार्य करते समय अपने विवेक का उपयोग करोगे। में वचन पत्र लिखकर विवेक खरीदकर अगला पाया लेने आगे निकल पड़ा। प्रेम का पाया (Affection Pillar)– एक दुकान के बोर्ड पर नज़र पड़ी जिस पर लिखा था यहाँ पर प्रेम बिकता है। में सहम गया यह देख कर की प्रेम भी बिकता है, इसी सोच में मेंने दुकान में प्रवेश किया और कहा मुझे प्रेम का पाया चाहिये । दुकानदार ने तत्परता दिखते हुए कहा हाँ…….प्रेम का पाया भी मिलता है परंतु इसकी कीमत पाँच दिन का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम है और आप इस प्रशिक्षण में उत्तीर्ण हो गए तो आपको प्रेम का पाया दे दिया जायगा । मेने पाठ्यक्रम प्राप्त किया और उसको ध्यान पूर्वक पढ़ने लगा ; पहला दिन – आज पूरा दिन आप किसी भी प्राणी को प्रताड़ित नहीं करेंगे, दूसरा दिन – दिन भर किसी पर भी क्रोध नहीं करना है, तीसरा दिन – आज आप सभी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते रहेंगे, चौथा दिन – आज आप किसी की भी निंदा नहीं करेंगे, एवं पाँचवाँ दिन – आज आपके धैर्य की परीक्षा है जिसमें कम से 75% प्रतिशत अंक प्राप्त करना अनिवार्य है। पाँच दिन का प्रशिक्षण बहुत लगन व परिश्रम से पूरा करके प्रेम का पाया पा लिया। त्याग का पाया (Sacrifice Pillar)– दोनों भारी पायों को लेकर आगे बड़ा तो अब प्रश्न यह था कि त्याग का पाया किस बाज़ार में मिल पायगा क्योंकि कोई भी दुकान ऐसी नहीं दिख रही थी जहां पर यह पाया मिल जाय। बहुत खोज-बीन के बाद एक बुजुर्ग ने बताया कि, आगे एक छोटी सी गली में एक संत जी की दुकान है वहाँ पर अवश्य ही त्याग मिल सकता है। में हिम्मत बटौर के गली में संत की दुकान के पास पहुँच गया परंतु संत के अलावा दुकान में कोई नहीं था। संत मुझको देख कर थोड़ा मुस्कुराए और पूछा क्या त्याग लेना है…… मेंने सिर हिला कर कहा हाँ त्याग का पाया लेना है। संत ने बोला इसके लिए आपको चार कार्य पूरे करने पड़ेंगे तभी आपको त्याग का पाया मिलेगा। पहला कार्य – अपने में जो भी अवगुण हैं उनको बाहर कचरा-टोकरी में फेंक कर आओ। दूसरा कार्य – शांति देवी की मूर्ति को घर में प्रतिष्ठित करो एवं तीसरा कार्य – अतिरिक्त माया को दान कर दो एवं चौथा – आलस्य एवं अहं का त्याग करना है । में पाशोपेश में पड़ गया कि इतना सब करना पड़ेगा ; चूंकि ‘स्वयं’ को हृदय में निवास करवाना था इसलिये में तैयार हो गया और चारों कार्य करके त्याग का पाया भी हासिल कर लिया। धैर्यता का पाया (Patience Pillar) – इतना चलने एवं दुकान ढूंढने में थक चुका था और मेरा धैर्य समाप्त हो रहा था परंतु मुझको चौथा पाया लेना भी ज़रूरी था इसलिये अपनी पूरी शक्ति को एकत्र करके आगे की ओर प्रस्थान किया और देखा कि, कुछ दुकानदार बहुत शांति एवं धैर्य से लोगों को वस्तुएं प्रदर्शित कर रहे हैं । में एक दुकान में गया और पूछा धैर्य का पाया मिलेगा? दुकानदार शालीनता से बोला हाँ मिल जायगा परंतु तीन शर्तों का पालन करना पड़ेगा पहली शर्त – दुकान कें पीछे एक बड़ा सा कमरा है वहाँ पर कुछ और सज्जन भी है आपको वहाँ पर एक दिन चुपचाप शांति से बैठना है, दूसरी शर्त – आप वहाँ पर कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करोगे चाहे कोई आपको अपशब्द भी बोले एवं तीसरी शर्त – आप वहाँ पर जो भी अच्छा या बुरा देखो उसको अपने मन में उतारकर किसी और को नहीं बताएँगे। मरता क्या न करता वाली स्थिति में ‘स्वयं’ के लिए उस कमरे में चला गया । मुझको समय व्यतीत करना बहुत कठिन हो रहा था परंतु सफलता के जोश एवं महान गीता के एक उपदेश (“तेरे वैरिलोग तेरे सामर्थ्य की निंदा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे”) ने मेरा धैर्य नहीं टूटने दिया और मुझको चौथा धैर्यता का पाया भी मिल गया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । आनंद का प्लेटफार्म (Pleasure Platform) – में बहुत उत्साहित एवं प्रसन्न था कि अब केवल आनंद का प्लेटफार्म लेना शेष है । में तेज़ी से चलते चलते बहुत दूर निकल गया परंतु आनंद के प्लेटफार्म की दुकान नहीं मिल पा रही थी, रास्ते में कुछ लोगों से पूछा तो वे भी आनंद से अनभिज्ञ थे परंतु थोड़े चलने के बाद उसकी दुकान मिल ही गयी परंतु वहाँ पर बहुत भीड़ थी हर कोई आनंद का प्लेटफार्म लेने के लिये व्यग्र था पर में जैसे तैसे प्रयास करके दुकान में घुस गया । दुकान मालिक ने एक नज़र मुझ पर ऊपर से नीचे तक डाली और पूछा आनंद का प्लेटफार्म लेने आए हो ! आपके पास प्रेम, त्याग, धैर्य, और विवेक के पाये होना चाहिए तभी आनंद का प्लेटफार्म मिलेगा और यहाँ तीन कतार लगी है उनमें लग कर तीन गुणों (परमार्थ, आध्यात्म एवं करुणा) को भी अपनाना पड़ेगा इसका कोई शुल्क नहीं है। चारों पायों की प्राप्ति का प्रमाण पत्र दिखाकर एवं कतारों से तीनों गुणो को प्राप्त करके आनंद का प्लेटफार्म भी प्राप्त कर लिया । चारों पायों एवं प्लेटफार्म का पंचासन बनने के बाद ऐसा अनुभव हुआ की, मानो मेने संसार की दौलत एवं सभी खुशियाँ प्राप्त कर ली है, क्योंकि मेरा जीवन अब सत्य, विवेक,आदर,करुणा,शांति,धैर्य,परमार्थ,आध्यात्म से परिपूर्ण होगा और निंदा, क्रोध, मान, माया एवं अवगुण रहित होगा जिससे ‘स्वयं’ को में हृदय में निवास करवा पाऊँगा। सारांश में आत्मा और मन अलग-अलग हैं । विवेक, प्रेम, त्याग, धैर्यता एवं आनंद आत्मा के अवयव है परंतु मन में सकारात्मक एवं नकारात्मक अवयवों का मिश्रण है । आत्मा के पाँच अवयव एवं एवं मन का सकारात्मक अवयव जब एकीकृत हो जायेंगे तब व्यक्ति को जीवन के आनंद का बहुत सुखद अनुभव होगा । Healthy Mind Positive Thinking