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शांति’ का जादू

Pramod Mehta, September 15, 2022December 5, 2022

The Magic of Peace

‘शांति’ ऐसा शब्द है जो लगभग हर व्यक्ति के शब्दकोश में पाया जाता है क्योंकि इसकी तासीर ही  कुछ ऐसी है। परंतु अधिकतर यह पुस्तक तक ही सीमित होकर रह गया है जबकि इसका इस्तेमाल तो हर क्षण आवश्यक है। वर्तमान आपाधापी वाली जिंदगी में ‘शांति’ का तत्व ऐसा हो गया जैसे दाल में धनिया पत्ती जबकी इसका स्थान नमक की जगह होना चाहिये । ज्यों-ज्यों सुख-सुविधाओं की उपलभ्धता बड़ती जा रही है त्यों-त्यों ‘शांति’ अनुपलभ्ध होती जा रही । मानव जीवन में ‘शांति’ और ‘कर्म’, रथ के दो पहियों के समान है, एक भी अनियंत्रित हुआ तो जीवन का रथ वहीं रुक जायगा या घसीट-घसीट कर चलेगा । ‘शांति’ का जादू जब चलता है तब जीवन निर्मलता से बह निकलता है। शरीर के छः अंगों में ‘शांति’ क्या जादू कर सकती है, इस लेख में विचारण किया गया है।

मस्तिष्क ‘शांति’

जब तक मस्तिष्क शांत है तब तक शरीर के साथ साथ सब कुछ सुचारु रूप से संचालित होता है। मानव मस्तिष्क जो मन से ज्यादा शासित है उसकी यह ख़ासियत है कि वह पूर्वाग्रही एवं नकारात्मक विचारों की ओर तुरंत अग्रसर हो जाता है जिससे वस्तुस्थिति ज्ञात नहीं हो पाती और गलत निर्णय की आशंका पुरजोर रहती है। इसलिये मानसिक ‘शांति’ के लिये पहली आवश्यकता है, हम मन से ज्यादा आत्मा की सुनें, कभी भी पूर्वाग्रह (preconcieved notion) से ग्रसित न हों और सकारात्मकता (optimisim) की ओर ही ध्यान देवें । शांति मस्तिष्क की क्रियाशीलता को बनाये रखती है जिससे समय पर उचित निर्णय ले सकें । ऐसे निर्णयों से ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। मस्तिष्क शांति का मुख्य श्रोत है आध्यात्म एवं तृप्ति की भावना ।      

वचन ‘शांति’

मेरे विचार से मानव मुख से निकले वचन ‘शांति’ एवं ‘अशांति’ के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होते हैं। कबीरदास जी के इस दोहे में मुख वचन ‘शांति’ का सार समाया है;

“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।      औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए”।।

जीवन में ‘शांति’ का निवास तभी होगा जब वचनों में मिठास घुली हो और यह केवल मन के धैर्य रूपी गन्ने में पायी जाती है। वचनों के लिये पारस्परिकता का सिद्धान्त लागू होता है, अर्थात ‘जैसा बोलोगे वैसा सुनोगे’। एक स्त्री के वचन के कारण महाभारत का युद्ध हो गया था।

हृदय ‘शांति’

हृदय को ‘शांति’ का अनुभव करवाने के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क एवं वचन की ‘शांति’ की घनघोर वर्षा की आवश्यकता है अन्यथा जीवन में घटाटोप हो जाता है। हृदय को ‘शांति’ मिलना नितांत आवश्यक है अन्यथा वह शांत हो जाता है। ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा कार्यरत मशीन मानव का हृदय ही है इसलिये लम्बी अवधि तक जीवित रहने के लिये इसकी शांति बनाए रखिएगा ।  

कर्म ‘शांति’

कर्म जो कि हस्त एवं पग से क्रियान्वित हों । कर्म की कार में ‘शांति’ का पेट्रोल ही सबसे उपयुक्त ईंघन है अन्यथा जीवन झटके झेलता हुआ झूमेगा और कहीं न कहीं दुर्घटनाग्रस्त होगा । वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के युग में कर्म की गाड़ी को  नियंत्रित रखने के लिये ‘शांति’ एवं धैर्य का पतवार-पहिया (Steering Wheel) भी ज़रूरी है। अस्थिर मन से कर्म करने वाले को न तो समूह में सुख-’शांति’ है न एकांत में। महान गीता में कहा गया है कि, “जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है”।

उदर ‘शांति’

उदर की ‘शांति’ के लिये ही हर तरह का कर्म होता है । मेरा यहाँ पर उदर ‘शांति’ से आशय उसकी पूर्ति से नहीं है बल्कि इस उदर पूर्ति के लिये किए गए कर्म एवं प्रयासों से है । अपराध से अर्जित आय से भोजन तो मिलेगा परंतु तृप्ति के लिये ‘शांति’ का रस नहीं मिलेगा, होटल के खाने से पेट भरेगा परंतु आत्मा रूपी पेट के लिये ‘शांति’ ब्रांड की मिठाई नहीं मिलेगी, कलह मिश्रित भोजन से पेट की अग्नि तो बुझेगी परंतु मनमुटाव की आग शांत नहीं होगी। अतः उदर ‘शांति’ मेहनत से कमाये हुए धन में, गृह लक्ष्मी के हस्त से बने भोजन में एवं प्रेम मिश्रित भोजन की ऊर्जा में ही है।

भोग ‘शांति’

उदर ‘शांति’ से ज्यादा महत्वपूर्ण भोग ‘शांति’ है जिसके अभाव में विलासिता प्रव्रत होती है जो अधिकांशतः अनाचार की देन है। कई गंभीर अपराध भोग-विलासिता एवं सत्ता के सुख के लिये कारित होते हैं, परंतु इस सुख में भी ‘शांति’ नहीं है क्योंकि मन तो अनंत भोग के लिये तैयार रहता है परंतु यह अंत-हीन भोग ‘अशांति’ के सागर में मानव को अचेत अवस्था में धकेलता है। यथार्थता में भोग ‘शांति’ केवल संयम एवं धैर्य से ही प्राप्त हो सकती है क्षणिक सुख दीर्घ काल की ‘शांति’ को ठीक उसी तरह समाप्त करता है जैसे चींटी हाथी को। महान गीता में कहा गया है कि, “आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है”।

‘शांति’ एक प्रकार के तपस्या है जो वाणी की सुंदरता, हृदय की शुद्धता एवं इंद्रियों के संयम से ही पूर्ण होती है। ‘शांति’ के फल की खेती संतोष की ज़मीन पर ही हो सकती है। ‘शांति’ ऐसी अवस्था है जिसको आज नहीं तो कल अपनाना ही पड़ेगा क्योंकि वही जिंदगी का सत्य है। ‘शांति’ की महानता तो उसके लिये घोषित पुरस्कार से भी मालूम पड़ती । विश्व का सबसे ख्याति प्राप्त ईनाम ‘शांति’ का नोबल पुरस्कार है । जिसके पास भी ‘शांति’ की उक्त छः कोड़ियाँ हैं वह जिंदगी की चौपड़ कभी नहीं हार सकता ।  

जिसके मन में ‘शांति’, उसके चेहरे पर कान्ति
जिसके मस्तिष्क में ‘शांति’, कोसो दूर सभी भ्रांति
जिसके भोग में ‘शांति’, योग हमेशा उसका सारथी
जिसके वचन में ‘शांति’ उसके लिये ताली ही ताली
जिसके कर्म में ‘शांति’, नहीं सताती आधी-व्याधि

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Pramod Mehta

After extending my service of 37 years in the ‘New India Assurance’, I started my passion for writing on life management. In my opinion, a clear vision of life is much needed in today's scenario.
My style of writing is simple so that my readers get a clear understanding.

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From my experience, I observed that a clear vision of life is much needed among people around thus chose ‘Life management’ as the genre of my blog.

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