शिक्षक ही रक्षक Pramod Mehta, September 5, 2022December 5, 2022 Teacher is a protector प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत रत्न श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि वे एक महान शिक्षक थे । उनके विचार से शिक्षक राष्ट्रनिर्माण का अहम हिस्सा है । उनकी विचारधारा से प्रेरित होकर यह लेख शिक्षकों को समर्पित है। उत्तम शिक्षक का साथ एक व्यक्ति की जीवन भर की पूंजी होती है और ऐसे शिक्षक का मिलना हमारा सौभाग्य है। एक छात्र को किसी भी रूप में ढालने के शक्ति शिक्षक में ही होती है क्योंकि इस समय छात्र का मन एवं मस्तिष्क पानी की तरह स्वच्छ एवं निर्मल होता है और उसमें इतनी शक्ति होती है कि, वह हर तरह से शिक्षित हो सके। किसी का भी मस्तिष्क कमज़ोर नहीं है, सवाल इस बात का है कि उसको तराशा कैसे गया है। शिक्षक की मानव जीवन में भूमिका को बृहमाण्ड के सात मुख्य ग्रहों की विशेषताओं से जोड़कर शिक्षक की उत्क्रष्ठता के महत्व पर प्रकाश डालने का एक प्रयास यह लेख है एवं शिक्षक कौन पर विचार व्यक्त किये गये हैं। सूर्य – ऊर्जा का सबसे प्रमुख श्रोत है, जिनकी अनुपस्थिति अंधकार है । एक शिक्षक की भूमिका भी सूर्य के समान ही है क्योंकि वह भी ज्ञान का मुख्य श्रोत है जिसके अभाव में मानव जीवन में अंधकार है। शिक्षक ही ज्ञान के प्रकाश से मस्तिष्क के अंधकार को दूर कर सकता है। बुध – ज्ञान का परिचायक होता है और शिक्षक भी ज्ञान का ही प्रतिरूप है । ज्ञान एवं शिक्षा प्रदान करना एक शिक्षक का पहला एवं अंतिम कार्य होता है। जैसे ब्रह्मांड में ज्ञान के लिए बुध ग्रह को माना जाता है वैसे ही पृथ्वी पर शिक्षक ज्ञान का ‘ग्रह’ है । शुक्र – भौतिक सुख, धन, यश, ऐश्वर्य का परिचायक है। इन सभी सुखों का सदुपयोग कैसे किया जाय की जानकारी शिक्षक ही प्रदान करता है । भाग्यवश भौतिक सुखों की प्राप्ति तो हो सकती परंतु उनका सही उपभोग तभी होगा जब व्यक्ति को ज्ञान हो कि इनकी प्रकृति क्या है एवं इसको कैसे उपयोग में लाया जाय। प्रथ्वी – शिक्षक भी धरा के समान है जो सब कुछ सह कर आदिमानव को मानव बनाने का कार्य करता है । पृथ्वी ने सभी को अपने दामन में जैसे समेट रखा है ठीक वैसे ही हर शिक्षक अपने छात्रों के लिये समर्पित रहता है एवं इसी में वह अपना सुख प्राप्त करता है। मंगल – बुरे प्रभावों एवं आपदाओं से बचाव करने वाला ग्रह माना जाता है। शिक्षक भी विध्यार्थी को हर तरह की शिक्षा प्रदान करता है जिससे वह बुरी आदतों, कार्यों से दूर रह सके। मंगल गृह के समान ही शिक्षक ही विध्यार्थी को अच्छे बुरे के ज्ञान की जानकारी देकर जिंदगी संवारता है। वृहस्पति – जिसको गुरु के नाम से भी जाना जाता है यह विद्या, मान-सम्मान, वैभव और धन का प्रतीक है। पृथ्वी का ‘गुरु’ भी इन्ही विशेषताओं का प्रतीक है क्योंकि यही व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से ज्ञान, धान, सम्मान उपलभ्ध करवाता है। इसिलिये कहा जाता है जिसका गुरु बलवान वह हर तरह से महान। शनि – जो न्याय के देवता के नाम से भी जाने जाते हैं। एक शिक्षक भी अपने विध्यार्थीयों को शिक्षा प्रदान कर अपनी उपस्थिती का न्याय करता है । शिक्षक भी एक न्यायाधीश की भूमिका निभाता है क्योंकि अच्छे छात्र को प्रोत्साहन देकर बुरे कर्मों के लिये हतोत्साहित करता है जिससे विध्यार्थी नैतिकता के मार्ग पर चलकर संसार का सामना बखूबी कर सके। ज्ञान के मंदिर के शिक्षक के अलावा शिक्षक कौन ? माता-पिता – दोनों मानव के प्रथम एवं अंतिम शिक्षक है क्योंकि संतान के जन्म से लेकर स्वयं की मृत्यु तक के अनुभव से ज्ञान का मज़बूत मचान मंचन कर संतान को सौंपता हैं जिस पर खड़े होकर वह संसार को हर दृष्टि से देख कर प्रगति की ओर अग्रसर हो जाती है। दोनों की शिक्षा बहुत प्रभावी औषधि हैं क्योंकि वह निस्वार्थ प्रेम से परिपूर्ण है । मित्र – यह कौम जिसमें पति-पत्नि भी हैं जो शिक्षक के रूप में हमेशा साथ निभाते है। मुसीबत के समय अक्सर व्यक्ति का मस्तिष्क भ्रम पूर्ण स्थिति में आ जाता और इस घड़ी में मित्र ही मार्गदर्शन करके मुसीबत से उबार लेते हैं। संसार – पूरी दुनिया अपने आप में शिक्षक है क्योंकि हर तरह का अनुभव शिक्षा के रूप में यहीं से प्राप्त होता है यह ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा संस्थान है जहाँ की निःशुल्क शिक्षा जिंदगी के हर क्षेत्र में बहुत उपयोगी होती है। समय – समय तो शिक्षक का सबसे अच्छा उदाहरण है इसीलिए कहते है ‘समय आदमी को सबकुछ सीखा देता है’। शिक्षक के द्वारा नीतिगत शिक्षा भी प्रदान की गयी है तो एक युवा को जिंदगी में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना करने में लेश मात्र भी कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि वह इनके लिये पहले से ही मानस तैयार कर लेता है। बड़े से बड़े युद्ध में विजय दिलवाने वाले शिक्षक ही थे । वानर राजा श्री जामवंत जी की शिक्षा से लंका युद्ध में श्रीराम ने विजय प्राप्त की, भगवान श्रीक़ृष्ण ने ‘गीता’ की शिक्षा से पांडवों को महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करवायी, इसिलिए शिक्षक को रक्षक कहना उनका सम्मान है । शिक्षक अस्त्र-शस्त्र को छूए बिना ज्ञान के बोल एवं कलम से विजय हासिल कर लेता है । मानव जीवन में शिक्षक, गुरु, मार्गदर्शक, की अनिवार्यता उसके लिए बोली जाने वाली सबसे उत्तम कहावत “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय” से प्रगट होती है । गुरु ही मोक्ष मार्ग के पथ प्रदर्शक हैं। गुरु से प्रार्थना इतनी शक्ति हमें देना गुरुवर मन का विश्वास कमजोर हो ना, हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना । गुरु की वंदना गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा, गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।सभी गुरुओं को सादर नमन Cherishable Moments Positive Thinking