क्षमायाचना कब, क्यूँ, कहाँ और कैसे Pramod Mehta, August 31, 2022December 5, 2022 When, why, where, and how to apologize किसी भी प्रकार गलती होने पर हम अधिकतर इंग्लिश शब्द ‘Sorry’ का उपयोग करते हैं जो कि, ‘क्षमा’ को ही प्रतिनिधित्व करता है। ‘क्षमा’ शब्द में ऐसी शक्ति है जिसे सर्वशक्तिमान का भी वरदहस्त प्राप्त है । जिस शक्ति को ईश्वर का आशीर्वाद मिला हो उसके आगे किसी की अहमियत नहीं हैं । इस ‘क्षमा’ की शक्ति को व्यवहार में लाना या इस पर अमल करना भी आसान नहीं है इसिलिये कहते हैं ‘क्षमा विरस्य भूषणम’ अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है । क्षमा का उपयोग कब, क्यूँ, कैसे और कहाँ करना चाहिये एवं वीर कौन हो सकता है एवं क्षमा आभूषण क्यों है इस पर लेख में विचारण किया है। क्षमा कब –मानव के मन एवं मस्तिष्क में जो विचारों की उत्पत्ति होती है वह संसार के किसी व्यक्ति, वस्तु से ही संबन्धित होती है और जिस क्षण मानव इन विचारों को किसी भी रूप या माध्यम से व्यक्त करता है तो उस अभिव्यक्ति के कई अर्थ भी निकल जाते हैं जो अच्छे व बुरे प्रतीत हो सकते हैं । अतः सर्वप्रथम तो बहुत सोच-समझ कर अभिव्यक्ति करना चाहिये जिससे कोई अवहेलना न हो, फिर भी किसी को बुरा लग जाता है तो तुरंत उसका एक ही उत्तम इलाज़ शेष रहता है और वह है ‘क्षमायाचना’रूपी मलहम । यही वह समय है जब ‘क्षमा’ का उपयोग सार्थक सिद्ध हो जाता है, अन्यथा ज़ुबान से लगा घाव नासूर बन जाता है । क्षमा क्यूँ – शब्द बाण के घाव को भरने की एक ही औषधि बहुत कारगर होती वह है‘पश्चाताप’ जो कि, ‘क्षमायाचना’ के मलहम से तैयार होती है और यदि इस औषधि का उपयोग मानव लोक में नहीं किया गया तो अंतिम फैसला ईश्वरीय लोक में तो निश्चित है। क्षमा कैसे -‘क्षमायाचना’करना भी एक कला है जिसमें अहं एवं शर्म को अलग रख कर आत्मबल के सहारे यह अनुभव या अहसास करवाना पड़ता है कि, याचक वास्तव में मन, वचन एवं काया से क्षमाप्रार्थी है तभी क्षमा के उद्धेश्य की पूर्ति होगी अन्यथा यह मात्र औपचारिकता होकर रह जाएगी और यह वीरों का आभूषण न हो कर कायरों का अस्त्र बन जायेगी। क्षमा कहाँ –क्षमायाचना का सर्वोत्तम स्थान है जिससे क्षमायाचना करनी है उसके पास व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर, क्योंकि याचक के हाव-भाव से भी यह प्रदर्शित हो कि वह यथार्थ में क्षमाप्रार्थी है। यदि व्यक्तिगत मिलन संभव नहीं है तो जब भी प्रथम बार मिलना हो तब इस औपचारिकता को यथार्थता में तब्दील करना महान व्यक्तित्व की निशानी है। क्षमा आभूषण है – क्षमा को आभूषण ही क्यों माना जाता है अस्त्र-शस्त्र क्यों नहीं ? क्षमा ईश्वर का अनमोल उपहार होकर इसमें सद्गुण, सद्व्यवहार, सुंदरता एवं सहयोग समाहित हैं जो शांति के प्रतीक हैं अतः जहां शांति है वहाँ अस्त्र-शस्त्र तो भ्रांति हैं और जो कार्य अक्षर एवं आवाज कर सकते हैं वह अस्त्र-शस्त्र नहीं । वीर कौन – क्षमा के कवच रूपी आभूषण को वही वीर पुरुष धारण कर सकता है जिसका मन एवं मस्तिष्क मानवीयता से मँझा हुआ हो और जिसमें अहं की गर्दी, स्वार्थ की मर्ज़ी एवं नियत फ़र्जी न हो । क्षमा के आभूषण का अस्त्र विवादों के युद्ध को समाप्त करने की क्षमता रखता हैं। क्षमा और मानव की बीच अक्सर ‘शर्म’ एवं ‘लोग क्या कहेंगे’ की दीवार खड़ी हो जाती है । ‘शर्म’ की दीवार को केवल आत्मबल (विल पावर) के हथौड़े से तोड़ा जा सकता है और ‘लोग क्या कहेंगे’ की दीवार को ‘जाने भी दो यारों’ की मानसिकता से ध्वस्त किया जा सकता है। ‘क्षमा’ याचक को आज़ाद एवं दानी को आबाद करती है, क्योंकि याचक पश्चाताप आग से मुक्त होता है एवं दानी संतुष्टि एवं शांति पाता है इसलिये कहावत है कि, ‘अंत भला सो सब भला’ । जैन धर्म में भगवान महावीर के दो मुख्य सिद्धान्त ‘अहिंसा परमोधर्म’ एवं ‘जियो और जीने दो’ क्षमा के ही परिचायक हैं। जैन धर्मावलम्बियों के उत्सव “पर्युषण महापर्व” पर विषेश रूप से समर्पित। करो ऐसा कर्म जो रखे सबका का मन, बोलो ऐसे बोल जो हर्षित करे सभी का मनहो जाए जाने-अंजाने में यदि कोई अपकर्म, ‘क्षमा’ ही है इसके प्रायश्चित का उचित धर्म Healthy Mind Joyful Lifestyle Positive Thinking