पंद्रह अगस्त पर आदरणीय प्रधानमंत्री के पाँच प्रण Pramod Mehta, August 17, 2022December 26, 2022 Honorable Prime Minister’s 5 vows on 15th August देश के Prime Minister/प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वतन्त्रता दिवस एवं आज़ादी के अमृत महोत्सव (15-08-2022) के सुअवसर पर अपने उद्बोधन में पाँच प्रण का उल्लेख किया है, पहला-विकसित भारत, दूसरा-गुलामी के सारे अंश को दूर करना, तीसरा-अपनी विरासत पर गर्व करना सीखिए, चौथा-एकता और एकजुटता एवं पांचवां प्रण-नागरिकों का कर्तव्य। इतनी उच्च पदासीन हस्ति ने जब प्रण हमारे सम्मुख व्यक्त किये हैं तो उनके पीछे कोई विशेष मंतव्य उद्धेश्य तो होना ही हे, अतः हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि, उन प्रणों पर विचार कर कार्यान्वित करने की पहल अवश्य करें। में पांचों प्रणों को हमारी प्राणों समान प्रिय पाँच इंद्रियों से जोड़कर उनके महत्व को दर्शाने का प्रयास कर रहा हूँ। जैसा की विदित है कि, मानव शरीर में पाँच इंद्रियाँ आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा होती हैं जो हमको ज्ञान एवं अनुभव करवाती हैं । इस लेख में पांचों प्रणों को अवरोही क्रम से विचारण किया हैं। नागरिकों का कर्तव्य (Duties Citizens) भारत के संविधान में नागरिकों के मूलभूत कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है अतः उनकी पुनरावृत्ति नहीं कर रहा हूँ। ‘त्वचा’ (Skin) इंद्रिय से इन सभी कर्तव्यों को जोड़ें तो पायेंगे की उनकी हमारे विकास में कितनी अधिक प्रासंगिकता है । जिस प्रकार से त्वचा हमारे आंतरिक शरीर की ढाल बनकर सभी अंगों को कार्य करने की शक्ति देती है ठीक इसी तरह हमारे कर्तव्य हमारी ढाल हैं, क्योंकि कर्तव्यों का निर्वहन ही आंतरिक एवं आत्मिक शक्ति को मजबूत बनाता है जिसके बल-बूते पर हर कार्य संभव है अतः उमंग/उत्साह एवं गंभीरता की भावना से मूलभूत कर्तव्यों का पालन करना एवं करवाना भारत को विकसित करने की एक आवश्यक कड़ी है। संविधान में उल्लेखित कर्तव्यों के अलावा नागरिक के अन्य कर्तव्य भी है जैसे भ्रष्टाचार न करें न करने दें क्योंकि यह तो ज़हर देने एवं खाने के समान है । सुदूर गावों की जनता को मूलभूत सुविधाओं को उपलभ्ध करवाना हम शहरी लोगों का भी कर्तव्य बनता है । गाँव का विकास देश का विकास। ‘कर्तव्यों की शान भारत की जान’ एकता और एकजुटता (Unity & Solidarity) ‘अनेकता में एकता’ भारत की विशेषता जो विश्वभर में प्रख्यात है । हमारी श्रवण इंद्रिय दो कर्ण हैं और दोनों एक समान ही सुनते हैं न कि, अलग अलग क्योंकि उनमें एकता है अतः इनसे सबक लेते हुए सभी की बातों को समानता व ध्यान से सुनना एवं उनका मनन करके निपटारा करना सभी के हित एवं विकास के लिए आवश्यक है क्योंकि सबकी सुनवाई करके कार्य को अंजाम देना ही एकता एवं एकजुटता है । इसी एकता का सभी परिवार, समाज, राज्यों में सूत्रपात करने से देश में ही नहीं वरन विदेशों में भी अपना परचम लहरा सकते हैं । 1983 में क्रिकेट का विश्वकप जीतना एकता एवं एकजुटता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है एवं उस पर बनी हिन्दी फिल्म ‘83’ का गीत “लहरा दो लहरा दो, सरकशी का परचम लहरा दो लहरा दो” एकता के लिए बहुत सटीक प्रतीत होता है। वर्तमान में भारत एक विश्व शक्ति के रूप में अपना स्थान बना चुका है जिसको बनाए रखने के लिए हमारी कानों के समान एकजुटता अति आवश्यक है । ‘एकता की कड़ियाँ सफलता की सीड़ीयाँ’ । विरासत पर गर्व (Proud on Heritage) विरासत पर गर्व होना और शरीर पर ‘नाक’ इंद्रिय का होना समान ही है । हिंदुस्तान की विरासत एवं संस्कृति पर हमें नाज़ था, हे और हमेशा रहेगा । यहाँ की समृद्ध विरासत जो की हम सब की ‘नाक’ है को विश्व नमन करता है अतः इस गर्व एवं ‘नाक’ को बनाए रखना भी भारतीय नागरिक का मूलभूत कर्तव्य है जिसके बल पर भारत दुनिया को अपना लोहा मनवा सकता है एवं विरासत की सुगंध विश्व के कोने कोने तक फैला सकता है। ‘विरासत का मान देश का नाम’ । गुलामी के सारे अंश को दूर करना (to vanish every part of Slavery) गुलामी का कोई भी अंश हमारे विकास के लिए काले धब्बे के समान है अतः इसको इस तरह से मिटाना है कि, हम हर क्षेत्र में आत्म-निर्भर हों । ‘जीभ’ इंद्रिय का होना एवं आत्म-निर्भर होने में काफ़ी समानता है जैसे जीभ स्वयं ही भोजन को पेट में पहुंचाती है जिससे शरीर में नई ऊर्जा एवं रक्त का संचार होता है और यही ऊर्जा की शक्ति हमको आत्मनिर्भर करती है, परिणामतः स्वयं साथ ही साथ दूसरों के कार्यों में हम सहायक होते हैं ठीक वैसे ही आत्म-निर्भरता की शक्ति से गुलामी के अंश तक का नामों निशान मिटाकर विकास के पथ पर सिर ऊँचा करके शान से सरपट दौड़ना है । आत्म-निर्भरता का सबूत हाल ही में हमने कितने ही देशों की गेहूं की कमी की पूर्ति की है, जबकि दशकों पहले भारत को अमेरिका से गेहूं मंगवाना पड़ा था। शपथ लेते हैं कि, कभी भी अंग्रेज़ो की गुलामी की चर्चा तक नहीं करेंगे। ‘स्वदेशी अपनाओ मात्र-भूमि का गौरव बढ़ाओ’ । विकसित भारत (Developed India) जिस तरह मानव के लिये आँखों की अनिवार्यता है उसी प्रकार से विकास रूपी चक्षु विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिये आवश्यक हैं । विकसित भारत के कदम चूमने हेतु हम सभी तन, मन एवं धन के बादलों से देशभक्ति की घनघोर वर्षा कर भारत भूमि पर धान एवं धन की फसल उगाएँ। विकसित भारत तभी बनेगा जब उसके युवा ‘चक्षु’ देश-रथ के सारथी बनें, विदेशी वस्तुओं का त्याग कर स्वदेशी अपनाएं, कृषि की प्रधानता बनी रहे, गाँव-गाँव में औद्ध्योगिक क्रान्ति हो, भ्रष्टाचार मुक्त समाज में सांस ली जा सके एवं सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे। मेरा यह लेख माननीय प्रधानमंत्रिजी की विशाल योजनाओं के क्रियान्वयन में गिलहरी के रामसेतु में योगदान के समान है। विरासत के गौरव दंड में बांधकर स्वदेशी वस्त्रों की गाँठ दिखायेंगे एकजुटता के ठाट फिर बनेगी कर्तव्यों की मशाल जिसे लेकर निकलेंगे संख्या में विशाल जगायेंगे अलख विकसित भारत का भस्म जो जायेगी गुलामी की धाक Positive Thinking